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________________ परिशिष्ट-IV प्रत्येक तप में करने की सामान्य विधि 1. उभय संध्याओं में (दोनों वक्त) प्रतिक्रमण करना चाहिए। 2. अधिकांश तपस्याओं में एक समय तथा नवपद, बीसस्थानक आदि कुछ तपों में तीन समय देववंदन करना चाहिए। 3. अरिहन्त परमात्मा की पूजा करनी चाहिए। 4. यदि अनुकूलता हो तो वीतराग परमात्मा के तीन बार दर्शन करना चाहिए। 5. सम्यक् ज्ञान की पूजा भक्ति करनी चाहिए। 6. उपवास आदि का प्रत्याख्यान विधि पूर्वक ग्रहण करके उसे पूर्ण करने चाहिए। 7. यदि नगर में गुरु भगवन्त विराजमान हो तो उनके मुख से प्रत्याख्यान लेना चाहिए। 8. प्रत्येक तप में बतलाए अनुसार 20 माला गिननी चाहिए। 9. प्रत्येक तप में निर्धारित संख्या के अनुसार खमासमण और प्रदक्षिणा देनी चाहिए। 10. प्रत्येक तप में निश्चित संख्या के अनुसार लोगस्स सूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए। 11. तपस्या के दिन विशेष रूप से ध्यान-स्वाध्याय आदि करना चाहिए। 12. इन दिनों ब्रह्मचर्य का पालन एवं भूमि शयन करना चाहिए। 13. साधु-साध्वी की वैयावृत्य करनी चाहिए। 14. तप के पारणे पर यथाशक्ति साधर्मीवात्सल्य अथवा अधिक न बन सके तो समान तप करने वाले एक-दो श्रावक या श्राविका को यथाशक्ति भोजन करवाना चाहिए। 15. प्रत्येक तप में तीन उकाले वाला गर्म पानी ही उपयोग में लेना चाहिए। 16. प्रत्येक तप की रात्रि में चतुर्विध आहार का त्याग (चउव्विहार का प्रत्याख्यान) करना चाहिए। 17. दीर्घ अवधि वाले या दुस्तर तप के अन्त या मध्य में उसका महोत्सव पूर्वक उद्यापन करना चाहिए। तप विधियों में बताए अनुसार उद्यापन करना चाहिए।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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