SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 364
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रम | तप का नाम तप प्रारम्भ दिन | तप प्रारम्भ दिन 137.| ज्ञान-दर्शन-चारित्र 20 | सा. |खमा. | कायो.| माला कायो.| माला | करने योग्य तप । तप दिन | तीन अट्ठम अथवा एकान्तर 9/12/18 उपवास सूचना 1. तप सारणी में उल्लिखित अधिकांश तप आगाढ़ रूप से किए जाते हैं। यहाँ आगाढ़ का अर्थ है- जिस तप को बीच में छोड़ा न जा सके तथा बीच में घूटने पर पुनः प्रारम्भ करना पड़े। कुछ तप अनागाढ़ है। यहाँ अनागाढ़ शब्द का अर्थ है- जिस तप को निरन्तर न करते हुए मध्य में छोड़ा भी जा सकता है। प्राय: रीति, श्रेणी, ओली या परिपाटी के द्वारा किये जाने वाले तप को आगाढ़ तप में गिना गया है क्योंकि एक ओली या परिपाटी का तप निरन्तरता (continuation) में होता है। उसे बीच में छोड़ा नहीं जा सकता। 2. जिस तप में महीने के एक या दो उपवास किए जाते हो उनमें उपवास आदि के हिसाब से तप दिन की संख्या मानी गई है। जैसे अष्टमी तप में 8 वर्ष, 8 महीना लगते हैं किन्तु कुल उपवास 200 दिन होते हैं अत: 200 दिन की गिनती की गई है। • जो तप एकान्तर उपवास अथवा पारणा करते हुए लगातार किये जाते हैं उनमें तप दिनों की गिनती पारणा पूर्वक की गई है। जैसे पैंतालीस आगम तप एकान्तर उपवास पूर्वक 90 दिनों में पूर्ण होता हैं, अत: इसमें तप के 90 दिन माने गये हैं। • कुछ तप औत्सर्गिक एवं वैकल्पिक दोनों विधियों से किये जाते हैं, उनमें दोनों संख्या दी गई है। इस प्रकार तप दिनों का निर्धारण पृथक-पृथक रूपों में किया गया है। 3. वर्तमान में कुछ आगाढ़ तप अनागाढ़ के रूप में किये जा रहे हैं जैसे- अट्ठाईसलब्धि तप एकान्तर या निरन्तर किया जाना चाहिए किन्तु कई जन 28 उपवास अपने हिसाब से पूर्ण करते हैं जो कि अनुचित है। प्रस्तुत सारणी से तत्सम्बन्धी स्पष्ट बोध किया जा सकता है। तप-विधि...302
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy