SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट-II प्रदक्षिणा - खमासमण सारणी पूर्वाचार्यों ने प्रत्येक तप में खमासमण (पंचांग प्रणिपात) देने का विधान किया है और जहाँ खमासमण का निर्देश हो वहाँ प्रदक्षिणा का अन्तर्भाव स्वतः समझ लेना चाहिए, क्योंकि तपश्चर्या में प्रदक्षिणापूर्वक ही खमासमण देने की विधि है। प्रत्येक तप की आराधना किसी न किसी श्रेष्ठ उद्देश्य से की जाती है। जो साध्य हो उसमें निहित गुणों को प्राप्त करना यही तप का मुख्य ध्येय होता है। अंतिम लक्ष्य (मोक्ष) को पाने से पूर्व व्यक्ति के सामने कई आदर्श हो सकते हैं जिन्हें समाचरित कर इष्ट तत्त्व को सहज उपलब्ध किया जा सकता है । इसीलिए खमासमण आदि की संख्या में भिन्नता है । जैसे कि अरिहंत परमात्मा 12 गुणों से युक्त हैं अतः उनकी आराधना हेतु साथिया आदि बारह-बारह होते हैं। इसी भाँति सम्यक्ज्ञान के 51 प्रकार माने गये हैं अतः तद्गुणों की प्राप्ति हेतु साथिया आदि 51-51 करने चाहिए । आचार्य 36 गुणों के धारक होते हैं तदनुसार उनकी आराधना करते समय साथिया आदि 36-36 किए जाते हैं। यही नियम सभी तपों के सम्बन्ध में भी समझना चाहिए। जिस तप में जितनी संख्या का निर्देश हो वहाँ उतने खमासमण निम्नानुसार देने चाहिए 12 खमासमण - अरिहन्त पद की आराधना हेतु प्रदक्षिणा का दोहा भगवान । परम पंच परमेष्ठि में, परमेश्वर चार निक्षेपे ध्याईये, नमो नमो जिनभाण ।। खमासमण के पद 1. अशोक वृक्ष प्रातिहार्य संयुताय श्री अर्हते नमः
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy