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________________ परिशिष्ट-1 -II...261 2. सुर पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य संयुताय श्री अर्हते नमः 3. दिव्य ध्वनि प्रातिहार्य संयुताय श्री अर्हते नमः 4. चामर युगल प्रातिहार्य संयुताय श्री अर्हते नमः 5. स्वर्ण सिंहासन प्रातिहार्य संयुताय श्री अर्हते नमः 6. भामंडल प्रातिहार्य संयुताय श्री अर्हते नमः 7. देव दुंदुभि प्रातिहार्य संयुताय श्री अर्हते नमः 8. छत्रत्रय प्रातिहार्य संयुताय श्री अर्हते नमः 9. ज्ञानातिशय संयुताय श्री अर्हते नमः 10. पूजातिशय संयुताय श्री अर्हते नमः 11. वचनातिशय संयुताय श्री अर्हते नमः 12. अपायापगमातिशय संयुताय श्री अर्हते नमः 31 खमासमण - सिद्धपद की आराधना हेतु प्रदक्षिणा का दोहा गुण अनन्त निरमल थया, सहज स्वरूप उजास । अष्ट करम मल क्षय करी, भये सिद्ध नमो तास ।। खमासमण के पद 1. मति ज्ञानावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः 2. श्रुत ज्ञानावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः 3. अवधि ज्ञानावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः 4. मनः पर्यव ज्ञानावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः 5. केवल ज्ञानावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः 6. निद्रा दर्शनावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः 7. निद्रा निद्रा दर्शनावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः 8. प्रचला दर्शनावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः 9. प्रचलाप्रचला दर्शनावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः 10. स्त्यानर्द्धि दर्शनावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः 11. चक्षु दर्शनावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः 12. अचक्षु दर्शनावरणीय कर्म रहिताय श्री सिद्धाय नमः
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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