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________________ परिशिष्ट-I...253 अरिट्ठनेमिं नमसामि।।4।। चत्तारि अट्ठ दस दोय, वंदिआ जिणवरा चउवीसं। परमट्ठ निट्ठिअट्ठा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु।।5।। वेयावच्चगराणं, संतिगराणं, सम्मदिट्ठि समाहिगराणं। करेमि काउस्सग्गं। अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिए पित्तमुच्छाए।।1।। सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहि।।2।। एवमाइएहिं, आगारेहिं, अभग्गो, अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो।।3।। जाव अरिहंताणं, भगवंताणं, नमुक्कारेणं, न पारेमि।।4।। ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि।।5।।। __(एक नवकार का कायोत्सर्ग करके 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्यो पाध्यायसर्वसाधुभ्यः' कहकर चौथी स्तुति कहें) हरि पूजित श्री जिन, शासन वासित भाव भवि बीसस्थानक, साधन पुण्य प्रमाव। सुर असुर उन्हीं के, होय सहायक आप फैले त्रिभुवन में, साधक पुण्य प्रताप।।4।। • अब नीचे बैठकर बायाँ घुटना ऊँचा करके ‘णमुत्थुणं' कहें। णमुत्थुणं णमुत्युणं अरिहंताणं भगवंताणं।।1।। आइगराणं, तित्थयराणं, सयं संबुद्धाणं।।2।। पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिवसर पुंडरिआणं, पुरिसवरगंधहत्थीणं।।3।। लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहिआणं, लोगपइवाणं, लोगपज्जो-अगराणं।।4।। अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं।।5।। धम्मदयाणं, धम्मदेसियाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवर-चाउरंत चक्कवट्टीणं।।6।। अप्पडिहयवर-नाण देसण घराणं, विअट्टच्छउमाणं।।7।। जिणाणंजावयाणं, तिन्नाणं-तारयाणं, बुद्धाणं-बोहयाणं, मुत्ताणं-मोअगाणं।।8।। सव्वनूणं-सव्वदरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-मव्वाबाहमपुणरावित्ति सिद्धिगइ नामधेयं ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जिअभयाणं।।।। जे अ अईआ सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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