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________________ 254...सज्जन तप प्रवेशिका संपइअ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि।।10।। • अब खड़े होकर ‘अरिहंत चेइयाणं' बोलें। अरिहंत चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं।।1।। वंदण वत्तिआए, पूअण वत्तिआए, सक्कार वत्तिआए, सम्माण वत्तिआए, बोहिलाभ वत्तिआए, निरुवसग्ग वत्तिआए, सम्माण वत्तिआए ।।2।। सद्धाए, मेहाए, धीईए, धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्ढमाणीए ठामि काउस्सग्गं।।3।। अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिए, पित्तमुच्छाए।।1।। सुहुमेहिं अंगसंचालहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालहिं।।2।। एवमाइएहिं आगारेहि, अभग्गो, अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो।।3।। जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं, न पारेमि।।4।। ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि।।5।। (एक नवकार का कायोत्सर्ग करके “नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः” कहकर पहली स्तुति कहें।) मूरति मन मोहन, कंचन कोमल काय सिद्धारथ नंदन, त्रिशलादेवी सुमाय। मृगनायक लंछन, सात हाथ तनुमान दिन-दिन सुखदायक, स्वामी श्री वर्द्धमान।।1।। लोगस्स लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे। अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवली।।1।। उसभ मजिअं च वंदे, संभव मभिणंदणं च सुमई च। पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वन्दे।।2।। सुविहिं च पुष्पंदंतं सीअल सिज्जंस वासुपुज्जं च। विमल मणंतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि।।3।। कुंथु अरं च मल्लि वंदे, मुणिसुव्वयं नमि जिणं च। वंदामि रिट्टनेमि, पासं तह वद्धमाणं च।।4।। एवं मए अभिथुआ, विहुय रयमला पहीण जरमरणा। चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु।।5।। कित्तिय वंदिय महिया, जे अ लोगस्स उत्तमा सिद्धा। आरुग्ग बोहिलाभ, समाहिवर मुत्तमं दितु।।6।। चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा। सागर वर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु।।7।।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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