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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...231 • जीत परम्परा के अनुसार इस तपकाल में निम्न क्रियाएँ करेंसाथिया खमा.
कायो. माला 12
12 जाप 1. श्री सीमन्धर जिनेश्वराय नमः 2. श्री युगमन्धर जिनेश्वराय नमः 3. श्री बाहु जिनेश्वराय नमः 4. श्री सुबाहु जिनेश्वराय नमः 5. श्री सुजात जिनेश्वराय नमः 6. श्री स्वयंप्रभ जिनेश्वराय नमः 7. श्री ऋषभानन जिनेश्वराय नमः 8. श्री अनंतवीर्य जिनेश्वराय नमः 9. श्री सूरप्रभ जिनेश्वराय नमः 10. श्री विशाल जिनेश्वराय नमः 11. श्री वज्रंधर जिनेश्वराय नमः 12. श्री चन्द्रानन जिनेश्वराय नमः 13. श्री चन्द्रबाह जिनेश्वराय नमः 14. श्री भुजंग स्वामी जिनेश्वराय नमः 15. श्री ईश्वर स्वामी जिनेश्वराय नम: 16. श्री नमिप्रभ जिनेश्वराय नमः 17. श्री वीरसेन जिनेश्वराय नमः 18. श्री महासेन जिनेश्वराय नमः 19. श्री देवसेन जिनेश्वराय नमः 20. श्री अजितवीर्य जिनेश्वराय नमः 35. अष्टमी तप
जैन मत में अष्टमी एवं चतुर्दशी को चारित्र तिथि के रूप में माना गया है। यह तप सम्यक् चारित्र की आराधना एवं मोहनीय कर्म का क्षय करने के उद्देश्य से किया जाता है।
इस दिन तप करने से शरीर और मन भी स्वस्थ रहते हैं।
विधि-यह तप शुभ दिन में शुक्ल पक्ष की अष्टमी से प्रारम्भ करके आठ वर्ष-आठ मास पर्यन्त दोनों अष्टमियों में उपवास पूर्वक किया जाता है।
उद्यापन- इस तप के पूर्ण होने पर स्नात्र पूजा करवायें तथा व्रतीधर गृहस्थ एवं साधुओं की वस्त्र-पात्र-आहारादि से भक्ति करें। • इस तप में संयम पद प्राप्ति की अभिलाषा से निम्न जापादि करेंजाप
साथिया खमा. कायो. माला ॐ ह्रीं नमो चरित्तस्स 17 17 17 20 36. सहस्रकूट तप
यह तप 1024 तीर्थंकरों की आराधना के उद्देश्य से किया जाता है। सहस्रकूट में 1024 तीर्थंकरों की गणना इस प्रकार होती है