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________________ 230...सज्जन तप प्रवेशिका 87. ॐ ही वरकाणा पार्श्वनाथाय नमः वरकाणा 88. ॐ ह्रीं विघ्नहरा पार्श्वनाथाय नमः अंतरिक्षजी 89. ॐ ह्रीं विश्वचिंतामणी पार्श्वनाथाय नमः खंभात 90. ॐ ह्रीं वही पार्श्वनाथाय नमः जीर्ण मालवा 91. ॐ ही सहस्रफणा पार्श्वनाथाय नमः पाटण 92. ॐ हीं सप्तफणा पार्श्वनाथाय नमः भणसाल 93. ॐ ह्रीं सेसली पार्श्वनाथाय नमः सेसली 94. ॐ ही शामला पार्श्वनाथाय नमः पाटण 95. ॐ हीं सोगडीया पार्श्वनाथाय नमः नाडलाई 96. ॐ ह्रीं शेरीसा पार्श्वनाथाय नमः शेरीसा 97. ॐ ह्रीं सोरठा पार्श्वनाथाय नमः वल्लभीपुर 98. ॐ ही स्वयंभू पार्श्वनाथाय नमः कापरडा 99. ॐ ही स्थंभण पार्श्वनाथाय नमः खंभात 100. ॐ हीं सोरडीया पार्श्वनाथाय नमः सिरोही 101. ॐ ह्रीँ सेसफणा पार्श्वनाथाय नमः सणवा 102. ॐ हीं रामचिंतामणि पार्श्वनाथाय नमः खंभात ॐ ह्रीँ सुलतान पार्श्वनाथाय नमः सिद्धपुर 104. ॐ ह्रीं सूरजमंडन पार्श्वनाथाय नमः सूरत 105. ॐ ही शंखलपुरा पार्श्वनाथाय नमः शंखलपुर 106. ॐ हीं हमीरपुरा पार्श्वनाथाय नमः मीरपुर 107. ॐ ह्रीं उवसग्गहरं पार्श्वनाथाय नमः नगपुरा 108. ॐ हीं हींकार पार्श्वनाथाय नमः अहमदाबाद 34. बीस विहरमान तप इस तप के द्वारा महाविदेह क्षेत्र में विचरण कर रहे बीस तीर्थंकरों की आराधना की जाती है। यह तप महाविदेह की श्रेष्ठ भूमि पर जन्म लेने एवं विचारों को प्रशस्त करने के उद्देश्य से करते हैं। विधि- इस तप में 20 उपवास निरन्तर अथवा एकान्तर पारणे पूर्वक करें। उद्यापन- यह तप पूर्ण होने पर मूलनायक भगवान की पूजा करवायें तथा यथाशक्ति देवद्रव्य, गुरुद्रव्य एवं साधारणद्रव्य में वृद्धि करें। 103
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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