________________
232...सज्जन तप प्रवेशिका
• 720 तीर्थंकर = पाँच भरत एवं पाँच ऐरवत इन दस क्षेत्रों की अतीतवर्तमान-अनागत ऐसे तीन-तीन चौबीसी के 5 + 5 = 10, 10 x 3 = 30, 24 x 30 = 720 तीर्थंकर होते हैं।
• 160 तीर्थंकर = अवसर्पिणी के चौथे आरे में और उत्सर्पिणी के तीसरे आरे में जब मनुष्य की संख्या सविशेष होती है, वह उत्कृष्ट काल कहलाता है। उस समय पाँच भरत व पाँच ऐरवत क्षेत्र में एक-एक तीर्थंकर विचरण करते हैं तथा महाविदेह क्षेत्र के 160 विजय में प्रत्येक में एक-एक तीर्थंकर विचरण करते हैं। इस प्रकार 160 तीर्थंकर होते हैं।
• 20 तीर्थंकर = वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में विचरण कर रहे 20 तीर्थंकर।
• 120 तीर्थंकर = भरत क्षेत्र की वर्तमान चौबीशी के पाँच-पाँच कल्याणक ऐसे 24 x 5= 120 होते हैं।
.4 तीर्थंकर = 1. ऋषभानन 2. चन्द्रानन 3. वारिषेण 4. वर्धमान ये चार शाश्वत नाम हैं।
यहाँ शाश्वत से तात्पर्य यह है कि भरत एवं ऐरवत क्षेत्र की दस चौबीशियों और बीस विहरमानों में उक्त नामवाले तीर्थंकर कहीं न कहीं होते ही है।
इस तरह 1024 तीर्थंकर होते हैं।
विधि- यह तप किसी भी शुभ दिन में प्रारम्भ कर इसमें 1024 तीर्थंकर की आराधना के निमित्त 1024 उपवास या एकाशना आदि करें।
इसमें उपवास आदि तप लगातार करना जरूरी नहीं है, अलग-अलग भी कर सकते हैं।
उद्यापन- यदि सामर्थ्य हो तो उपवास की संख्यानुसार ज्ञान-दर्शन-चारित्र के उपकरणों का दान देवें, पंच कल्याणक पूजा करवाएं तथा साधर्मी वात्सल्य करें।
• प्रचलित विधि के अनुसार गुणना आदि निम्न प्रकार करेंसाथिया खमा. कायो.
12 जाप- उपवास के दिन जिस तीर्थंकर की आराधना करनी हो उनके नाम के साथ ‘सर्वज्ञाय नम:' पद जोड़ देवें। 1024 तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार है
माला
12
12
20