________________
जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप - विधियाँ... 221
25. शत्रुंजय छट्ट - अट्ठम तप
इस तप में छट्ठ-अट्ठम किस हेतु से किये जाते हैं इसकी प्रामाणिक जानकारी का अभाव है। यद्यपि वर्तमान में यह तप खूब प्रचलित है। यह तप गृहस्थ एवं साधु उभय के लिए कहा गया है। प्रायः इस तप की आराधना सामूहिक रूप से होती है। इसकी परम्परा मान्य विधि यह है
इस तप में सर्वप्रथम अट्ठम (तेला) करके पारणा करें। तदनन्तर सात छट्ठ एकान्तर पारणा से करें। फिर पुनः एक अट्ठम करके पारणा करें।
इस प्रकार इसमें दो अट्ठम, सात छट्ठ और नौ पारणा कुल 29 दिन लगते हैं। इस तप की पूर्णाहुति प्रसंग पर तीर्थ यात्रा का संकल्प करें, जिनालय की आशातनाओं को दूर करें और यथाशक्ति प्रभुभक्ति एवं संघभक्ति करें।
उद्यापन
• इस तप के दौरान निम्नोक्त गुणना आदि करना चाहिएसाथिया खमा. कायो.
जाप
श्री शत्रुंजय तीर्थाय नमः
21
21
21
26. सिद्धि तप
माला
20
यह तप अपने नाम के अनुरूप सिद्ध पद प्राप्ति के लिए किया जाता है । आठवें गुणस्थान से सिद्ध पद पाने की श्रेणी का प्रारम्भ हो जाता है इसलिए इसमें आठ उपवास तक चढ़ते हैं। वर्तमान में यह तपोयोग खूब प्रचलित है।
इसकी सामान्य विधि यह है -
इस तप में प्रथम एक उपवास करके पारणा करें, फिर दो उपवास करके पारणा करें, फिर तीन उपवास करके पारणा करें, फिर चार उपवास करके पारणा करें, फिर पाँच उपवास करके पारणा करें, फिर छह उपवास करके पारणा करें, फिर सात उपवास करके पारणा करें, फिर आठ उपवास करके पारणा करें। इस प्रकार इसमें 36 उपवास और 8 पारणा कुल 44 दिनों (डेढ़ मास) में यह तप पूर्ण होता है।
उद्यापन परमात्मा की बृहद् स्नात्र पूजा करें, साधर्मीभक्ति एवं संघपूजा करें, सुविहित मुनियों को वस्त्र आदि का दान देवें।