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220...सज्जन तप प्रवेशिका
जो चिन्तामणि रत्न की तुलना से भी अनुपमित है, उसे पाने के लिए किया जाता है।
जैनाचार्यों ने उक्त भाव की अपेक्षा से ही इस तप का नाम 'चिन्तामणि तप' दिया है।
विधि - इस तप में पहले दिन उपवास, दूसरे दिन एकासना, तीसरे दिन नीवि, चौथे दिन उपवास, पाँचवें दिन एकासना और छठे दिन उपवास किया जाता है। यह आगाढ़ तप छह दिनों में पूर्ण होता है।
उद्यापन - इस तप के समाप्ति दिन में रात्रि जागरण करें। ज्ञान पूजा करें। पाँच स्त्रियों को ज्ञान के उपकरण देवें तथा साधर्मीभक्ति करें।
• इस तप के दिनों में भी पूर्ववत अरिहन्त पद की ही आराधना करें।
जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो अरिहंताणं 12 12 12 20 24. शत्रुजय मोदक तप
आत्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके मोक्ष रूपी फल को पाने के लिए यह तप किया जाता है। इस तप में शत्रुजय तीर्थ का नाम आदर्श रूप में इसीलिए है कि वहाँ पर अनन्त आत्माओं ने राग-द्वेष रूपी शत्रुओं को विनष्ट किया, हम भी इसी लक्ष्य को सिद्ध करें और हमारी पुरुषार्थ यात्रा अगणित वेग से आगे बढ़ सकें।
इस तप के करने से विपुल कर्मों की निर्जरा होती है और राग-द्वेषादि परिणाम मन्द होते हैं। यह आगाढ़ तप गृहस्थ एवं श्रमण दोनों के लिए करणीय है। इसकी तप विधि इस प्रकार है -
इस तप में पहले दिन पुरिमड्ढ़, दूसरे दिन एकासना, तीसरे दिन नीवि, चौथे दिन आयंबिल और पाँचवें दिन उपवास करें। इस प्रकार यह तप पाँच दिनों में पूर्ण होता है।
उद्यापन - इस तप के अन्तिम दिन परमात्मा की बृहद् स्नात्र पूजा करें, पाँच मोदक चढ़ायें, उस पर पाँच रुपया रखें। चाँदी के सिक्के से ज्ञान पूजा करें।
• परम्परा मान्य सामाचारी के अनुसार इन दिनों निम्न विधि से गुणना आदि करें - जाप
साथिया खमा. कायो. माला श्री शत्रुजय तीर्थाय नमः 21 21 21 20