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212...सज्जन तप प्रवेशिका फिर अन्त में एक उपवास करें। इस प्रकार 27 दिनों में यह तप पूर्ण होता है।
उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर यथाशक्ति रत्नत्रय के उपकरणों का दान करें और देवत्रय की भक्ति करें। • प्रचलित विधि के अनुसार इसमें अरिहन्त पद की आराधना करें -
जाप साथिया खमा. कायो. माला . ॐ नमो अरिहंताणं 12 12 12 20 13. नवनिधि-तप
संसारी प्राणियों के लिए नव निधि, अष्ट सिद्धि आदि लब्धियों का विशेष महत्त्व होता है। चक्रवर्ती जैसे पुण्यशालियों को भी नवनिधि की साधना करनी पड़ती है। जब उत्कृष्ट पुण्यराशि एकत्र होती है तब नव निधान सहजतः प्राप्त होते हैं। कई साधक भी आठ सिद्धियों और नव निधियों की वांछा करते हैं, एतदर्थ यह तप प्रस्थापित किया गया है। इन नव निधियों का कभी भी क्षय नहीं होता। इनका सामान्य स्वरूप इस प्रकार है -
1. नैसर्ग निधि - इस निधि से छावनी, नगर, गाँव, मण्डप और पत्तन आदि का निर्माण होता है।
2. पाण्डुक निधि - इससे मान, उन्मान, प्रमाण, गणित तथा धान्यों और बीजों का ज्ञान होता है।
3. पिंगल निधि- इससे नर, नारी, हाथी और घोड़ों के योग्य सर्व प्रकार के आभूषणों की विधि जानी जाती है।
4. महाकाल निधि - इससे वर्तमान, भूत और भविष्यत इन तीनों कालों का ज्ञान होता है तथा कृषि आदि कर्म एवं अन्य शिल्पादि कलाओं का ज्ञान होता है।
5. काल निधि - इससे चाँदी, सोना, मोती, लोहा तथा अन्य धातुओं की खानें उत्पन्न होती है।
6. मानव निधि - इसमें योद्धा, आयुध और कवच के विविध प्रकार तथा सर्व प्रकार की युद्ध नीति और दण्ड नीति प्रकट होती है।
7. सर्वरत्न निधि - इससे सात एकेन्द्रिय और सात पंचेन्द्रिय कुल 14 रत्न उत्पन्न होते हैं। ___8. महापद्म निधि - इससे सब प्रकार के शुद्ध और रंगीन वस्त्र निष्पन्न होते हैं।