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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...213
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9. शंख निधि - इससे चार प्रकार के काव्य की सिद्धि, नाट्य एवं नृत्य विधि और सब प्रकार के वाजिंत्र उत्पन्न होते हैं।
उक्त नव निधियों के नाम वाले नागकुमार जाति के देव इनके अधिष्ठायक होते हैं। इसकी प्रचलित विधि यह है -
इस तप में प्रत्येक निधि के लिए शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन उपवास करें, ऐसे नौ उपवास करने पर यह तप पूर्ण होता है।
उद्यापन - मूलनायक प्रतिमा के नव अंगों पर तिलक चढ़ायें। • इस तपश्चरण काल में जापादि निम्न प्रकार करेंजाप
साथिया खमा. कायो. माला 1. श्री नैसर्ग निधानाय नमः 2. श्री पाण्डुक निधानाय नमः 3. श्री पिंगल निधानाय नमः 4. श्री काल निधानाय नमः
श्री महाकाल निधानाय नमः 6. श्री मानव निधानाय नमः 7. श्री सर्वरत्न निधानाय नमः 8. श्री महापद्म निधानाय नमः
9. श्री शंख निधानाय नमः 14. नव ब्रह्मचर्यगुप्ति तप ___ जैसे खेत की रक्षा के लिए बाड़ लगायी जाती है वैसे ही ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए शास्त्रकारों ने नव प्रकार की वाड़ बतलायी है। उसका सामान्य स्वरूप इस प्रकार है -
1. विविक्त वसति सेवा - स्त्री, पशु, नपुंसक से रहित स्थान में रहना। 2. स्त्री कथा परिहार - स्त्री-सम्बन्धी वार्ताएँ नहीं करना।
3. निषद्याऽनुपवेशन - जिस स्थान या कुर्सी, चौकी आदि पर स्त्री बैठी हुई हो, वहाँ 48 मिनट तक नहीं बैठना। ____4. इन्द्रिय अदर्शन - स्त्रियों के अंगोपांग देखने का विचार भी नहीं
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करना।