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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...211
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7. कृपण काठिया निवारकाय नमः 8. भय काठिया निवारकाय नमः 9. शोक काठिया निवारकाय नमः 10. अज्ञान काठिया निवारकाय नमः 11. व्याक्षेप काठिया निवारकाय नमः 12. कुतूहल काठिया निवारकाय नमः |13. विषय काठिया निवारकाय नमः
अथवा
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जाप
कायो.
माला
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1. ॐ ह्रीं धम्मोज्जमियाणं नमः 2. ॐ ह्रीं विजयरागाणं नमः 3. ॐ हीं विनयधारिणं नमः 4. ॐ हीं मद्दवगुण संपन्नाणं नमः 5. ॐ हीं खंति-गुण संपन्नाणं नमः 6. ॐ हीं अप्पमत्तचारिणं नमः 7. ॐ हीं दानलद्धी संपन्नाणं नमः 8. ॐ ह्रीं ववगयभयाणं नमः 9. ॐ हीं वीयसोयाणं नमः . 10. ॐ ह्रीं सुमइ नाणधराणं नमः 11. ॐ हीं लद्धी जुत्ताणं नमः 12. ॐ हीं अप्पकम्मसंवरधारिणं नमः |13. ॐ हीं अट्ठपवयणजणणो धारिणं नमः 8 12. देवल इंड़ा तप
देवल यानी जिनालय, इंडा यानी कलश। जिनालय का कलश देवल इंड़ा कहलाता है। यह तप चैत्य कलश की आराधना हेतु किया जाता है। इस तप के करने से मिथ्यात्व मोहनीय कर्म का नाश होता है।
इसकी प्रचलित विधि यह है -
इस तप में सर्वप्रथम लगातार पाँच बियासना करें, फिर निरन्तर सात एकासना करें, फिर निरन्तर नौ नीवि करें, फिर निरन्तर पाँच आयम्बिल करें,
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