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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...203 1. ईर्या समिति- किसी जीव को कष्ट न हो इस तरह सावधानी पूर्वक चलना, बैठना, लेटना, अंगों के संकोच-प्रसारण की क्रियाएँ करना ईर्यासमिति है। 2. भाषा समिति - किसी के लिए अहितकर न हो ऐसे सत्य, निरवद्य एवं विवेक पूर्ण वचन बोलना भाषा समिति है। 3. एषणा समिति – बयालीस दोषों से रहित आहार-पानी ग्रहण करना एषणा समिति है। 4. आदान-निक्षेपणा समिति - वस्त्र, पात्र, उपकरण आदि को सावधानी से उठाना और रखना आदान-निक्षेपणा समिति है। 5. परिष्ठापनिका समिति - मल-मूत्र, श्लेष्म आदि अशचि पदार्थों को जीव-जन्तु रहित स्थान पर डालना परिष्ठापनिका समिति है।। ____6. मनोगुप्ति - मन के दुष्ट विचारों को रोकना मनो गुप्ति है। ___7. वचनगुप्ति - अत्यावश्यक स्थिति में बोलना अन्यथा मौन रखना वचनगुप्ति है। 8. कायगुप्ति – काया की दुष्ट प्रवृत्तियों को रोकना कायगुप्ति है। इस तप के करने से विशुद्ध चारित्र की उपलब्धि होती है अत: यह तप उत्कृष्ट चारित्र धर्म की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसकी वर्तमान प्रचलित विधि निम्न प्रकार है - 1. इसमें प्रत्येक माताओं की आराधना के लिए तीन-तीन दिन एकासना करें। जैसे ईर्यासमिति की आराधना के लिए तीनों दिन एक-एक कवल आहार लें। 2. फिर भाषा समिति की आराधना हेतु पहले दिन दो कवल, दूसरे दिन एक कवल, तीसरे दिन दो कवल ग्रहण करें। 3. एषणा समिति की आराधना हेतु तीन दिन अनुक्रम से 3-1-3 कवल ग्रहण करें। 4. आदान-निक्षेपणा समिति की आराधना हेतु तीन दिन क्रमश: 4-1-4 कवल ग्रहण करें। 5. परिष्ठापनिका समिति की आराधना हेतु तीन दिन क्रमश: 5-1-5 कवल ग्रहण करें।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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