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204...सज्जन तप प्रवेशिका
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6. मनोगुप्ति की आराधना के लिए क्रमश: 6-1-6 कवल ग्रहण करें। 7. वचनगुप्ति की आराधना के लिए क्रमश: 7-1-7 कवल ग्रहण करें। 8. कायगुप्ति की आराधना के लिए क्रमश: 8-1-8 कवल ग्रहण करें।
इस प्रकार 24 एकासना में 80 कवल ग्रहण करते हुए 8 पारणा पूर्वक यह तप 32 दिनों में पूर्ण किया जाता है।
उद्यापन- इस तप की महिमा को अभिवर्धित करने हेतु स्नात्र पूजा रचायें, रत्नत्रय के आठ-आठ उपकरणों का दान करें तथा संघपूजा आदि भक्ति करें।
• सुविहित परम्परानुसार प्रत्येक समिति-गुप्ति की आराधना के दिनों में क्रमश: निम्न जाप आदि करेंक्रम| जाप
सा. खमा. कायो. माला 1. ॐ ईर्यासमिति धराय नमः 3 - 3 2. ॐ भाषासमिति धराय नमः
| 5 | 5 3. ॐ एषणासमिति धराय नमः 4. | ॐ आदान-भंड-निक्षेपणा समिति
| धराय नमः 5. ॐ उच्चार-प्रस्रवणखेल परिष्ठापनिका
। समिति धराय नमः 6. ॐ मनोगुप्ति धराय नमः
7. ॐ वचनगुप्ति धराय नमः | 8. ॐ कायगुप्ति धराय नमः 7. चत्तारिअट्ठदसदोय तप
यह तप अष्टापद तीर्थ की आराधना के लिए किया जाता है। प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव प्रभु ने इसी पर्वत पर निर्वाण पद प्राप्त किया था। उनके प्रथम पुत्र भरत चक्रवर्ती ने यहाँ सिंह निषद्या-प्रासाद का निर्माण करवाया, जिसमें चारों दिशाओं में वर्तमान चौबीस तीर्थङ्करों की प्रतिमाएँ उनके देह परिमाण के अनुसार इस क्रम से स्थापित की हैं
1. दक्षिण दिशा में - पहले से चौथे तीर्थङ्कर तक कुल चार प्रतिमाएँ।
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