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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...201
21. पदानुसारी लब्धि - किसी भी ग्रन्थ का पहला, मध्य या अन्तिम पद सुनकर उसका अनुसरण करने वाले सर्व श्रुत का ज्ञान प्राप्त कर लेना पदानुसारी लब्धि है।
22. बीज लब्धि - बीजभूत एक पद को सुनकर दूसरा सर्व श्रुत यथार्थ जानना, बीज लब्धि है। ___23. तेजोलेश्या लब्धि - अग्नि के समान अति उष्ण पुद्गल फेंकना, तेजोलेश्या लब्धि है।
24. आहारक लब्धि - आहारक शरीर बनाना, आहारक लब्धि है।
25. शीतलेश्या लब्धि - जलते पदार्थों को जल छिड़काव के समान शान्त कर देना शीतलेश्या लब्धि है।
26. वैक्रिय लब्धि - विविध प्रकार की क्रियाएँ करना वैक्रिय लब्धि है।
27. अक्षीणमहानस लब्धि - लघु पात्र के आहार से अगणित को भर पेट भोजन करवाना, अक्षीणमहानस लब्धि है।
28. पुलाक-लब्धि - चक्रवर्ती की सेना को भी चकनाचूर करना, पुलाक लब्धि है।
विधि - तपसुधानिधि (पृ. 225) के अनुसार इस तप में एक-एक लब्धि के निमित्त 28 उपवास एकान्तर पारणे से करें अथवा लगातार 28 एकासना करें।
उद्यापन - इस तप के मध्य या अन्त में स्नात्र पूजा करवायें, फलपकवान आदि 28-28 की संख्या में चढ़ायें और यथाशक्ति साधर्मीभक्ति करें।
• गीतार्थ सामाचारी के अनुसार इस तप में उपवास या एकासना के दिन क्रमश: एक-एक लब्धिपद का जाप करेंजाप
साथिया खमा. कायो. माला 1. ॐ आमखैषधि लब्धये नमः 50 50 50 20 2. ॐ विप्रडौषधि लब्धये नमः 50 50 50 20 3. ॐ खेलौषधि लब्धये नमः 50 50 50 20 4. ॐ जल्लौषधि लब्धये नमः 50 50 50 20 5. ॐ सर्वौषधि लब्धये नमः 50 50 50 20 6. ॐ संभिन्नश्रोतो लब्धये नमः