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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...191 महीना या तेरह वर्ष लगते हैं। __उद्यापन - इस तप में पारणे के दिन सुविहित मुनियों को आहार दें, अतिथि संविभाग करें और यथाशक्ति साधर्मीवात्सल्य करें। • प्रचलित सामाचारी के अनुसार इस तप के दिनों में प्रभु ऋषभदेव के निर्वाण कल्याणक का जाप करें तथा शेष क्रियाएँ अरिहन्त पद के समान करें। जाप साथिया खमा. कायो. माला श्री ऋषभदेव पारंगताय नमः 12 12 12 20 2. पौषदशमी तप यह तप भगवान पार्श्वनाथ के जन्म कल्याणक की आराधना निमित्त किया जाता है। इस समय सभी तीर्थङ्करों की अपेक्षा प्रभु पार्श्व के उपासक वर्ग अधिक हैं। इनके नाम सुमिरण का साक्षात प्रभाव देखा जाता है। इसी कारण जैन समाज में जैसे चैत्र शुक्ला त्रयोदशी (भ. महावीर का जन्म कल्याणक) के दिन का महत्त्व है वैसे ही पौष कृष्णा दशमी दिन का भी माहात्म्य है। जैनाचार्यों के मन्तव्यानुसार इस तप के करने से मनोकामना सिद्ध होती है। इस लोक में अपूर्व सम्पदा की प्राप्ति होती है, परलोक में इन्द्रादि पद प्राप्त होता है और अन्तत: मोक्ष पद का अधिकारी बन जाता है। वर्तमान में पौष दशमी का तप करने वाले आराधक वर्ग की संख्या बढ़ती जा रही है। तपसुधानिधि (भा. 2, पृ. 173) के अनुसार इस तप में पौष वदि नवमी के दिन मिश्री (साकर) के पानी से एकासना करें और ठाम चौविहार करें। फिर दशमी के दिन ठाम चौविहार पूर्वक एकासना करें। फिर एकादशी के दिन तिविहार एकासना करें, इस प्रकार तीन दिन की आराधना करते हैं। यह तप तीन रूपों में किया जाता है - - 1. मध्यम से दस वर्ष और दस महीना, पौष कृष्णा 9, 10, 11 इन तीन दिनों की आराधना की अपेक्षा। 2. उत्कृष्ट से यावज्जीवन, पौष वदि दसमी की आराधना की अपेक्षा। 3. जघन्य से दस वर्ष पर्यन्त, पौष वदि दसमी की आराधना की अपेक्षा। __ इस तपोयोग में तीनों दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें, उभय सन्ध्याओं में प्रतिक्रमण करें, जिनालय में स्नात्रपूजा-अष्टप्रकारी पूजा करें और गुरु उपदेश सुनें।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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