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________________ 192...सज्जन तप प्रवेशिका उद्यापन – इस तप के पूर्ण होने पर 10 पुढे, 10 रुमाल (पुस्तक बांधने के), 10 जापमाला, 10 चन्द्रोवा, रत्नत्रय के 10-10 उपकरण, प्रभु पार्श्वनाथ की 10-10 प्रतिमाएँ आदि अर्पित करें। • इन दिनों अरिहन्त पद की क्रिया करते हुए प्रभु पार्श्वनाथ के जन्म कल्याणक का जाप करें - जाप साथिया खमा. कायो. माला श्री पार्श्वनाथ अर्हते नमः 12 12 12 20 3. मौन एकादशी तप __जैन एवं जैनेतर उभय परम्पराओं में इस तिथि दिन का अत्यधिक महत्त्व है। जैन परम्परानुसार प्रत्येक अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी कालखण्ड में पाँच भरत एवं पाँच ऐरवत क्षेत्र ऐसे कुल दस क्षेत्रों की 10 चौबीसियों में से 150 कल्याणक शाश्वत रूप से उस दिन होते हैं। इसलिए इस दिन की तुलना किसी अन्य दिन से नहीं की जा सकती। वर्तमान अवसर्पिणी कालखण्ड की अपेक्षा कहें तो इस चौबीसी के अठारहवें तीर्थङ्कर श्री अरनाथ भगवान की दीक्षा, उन्नीसवें तीर्थङ्कर श्री मल्लिनाथ भगवान का जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान तथा इक्कीसवें तीर्थङ्कर नमिनाथ भगवान का केवलज्ञान- ये पाँच कल्याणक इस दिन हुए हैं। इसी प्रकार पाँच भरत और पाँच ऐरवत इन दस क्षेत्रों में इसी दिन पाँच-पाँच कल्याणक होते हैं। इस तरह 5 x 10 = 50 कल्याणक हुए। इन्हीं को भूत, वर्तमान व भविष्यकाल की अपेक्षा गिनने पर 50 x 3 = 150 कल्याणक होते हैं। इसलिए इस दिन का माहात्म्य अपूर्व है। मौन एकादशी आराधना के सुफल के सम्बन्ध में सुव्रत सेठ का कथानक प्रसिद्ध है। यह तप आत्मिक सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसकी सुविहित विधि इस प्रकार है - यह तप मिगसर शुक्ला एकादशी से उपवास पूर्वक शुरू करें। इसमें चतुर्विध प्रकारों में से यथाशक्ति कोई भी रीति अपना सकते हैं 1. ग्यारह वर्ष तक मिगसर शुक्ला एकादशी को उपवास करना। 2. ग्यारह वर्ष तक प्रत्येक मास की शुक्ला एकादशी के दिन उपवास करना।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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