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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...189
करते हैं। इस प्रकार यह तप चार अथवा नौ दिनों में पूर्ण होता है।
• इस तप के उद्यापन में परमात्मा की स्नात्र पूजा रचायें, ज्ञान-पूजा करें तथा मोदक आदि द्रव्य सामग्री चढ़ायें।
• इस तप के दौरान निम्न रूप से अरिहन्त पद की आराधना करनी चाहिए।
जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो अरिहंताणं 12
12 12 20 4. स्वर्णकरण्डक तप
यह तप स्वर्ग प्राप्ति के लिए किया जाता है। स्वर्ग अर्थात ऊर्ध्वलोक में बारह कल्पोपन्न देवलोक, नौ ग्रैवेयक देव और पाँच अनुत्तर विमानवासी देव हैं। इस तरह इसमें कुल 26 जाति के देवी-देवता निमित्त आराधना करते हैं। उसकी विधि इस प्रकार है -
इससे सर्वप्रथम बारह देवलोकों के लिए 12 एकासना करें, फिर नव ग्रैवेयकों के लिए 9 नीवि करें, पश्चात फिर पाँच अनुत्तरवासी देवों के लिए 5 आयंबिल करें तथा अन्त में एक उपवास करें। इस प्रकार 27 दिनों में यह तप पूर्ण होता है। • इस तपस्या में प्रतिदिन अरिहन्त पद की आराधना करनी चाहिए।
जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो अरिहंताणं 12 12 12 20 5. अष्टमहासिद्धि तप
यह तप अपने नाम के अभिरूप अष्ट सिद्धियों को पाने के लिए किया जाता है। सम्यक् तप के प्रभाव से लब्धियाँ-सिद्धियाँ-निधियाँ सब कुछ प्रत्यक्ष हो सकती हैं अत: इस तप का निरूपण किया गया है।
विधि - इस तप की आराधना के लिए लगातार आठ एकासना करें अथवा आठ उपवास एकान्तर पारणे से करें। इस प्रकार इस तप में 8 अथवा 16 दिन लगते हैं।
उद्यापन – इस तप के पूर्ण होने पर यथाशक्ति ज्ञान पूजा आदि करें।
• परम्परागत सामाचारी के अनुसार इस तप काल में क्रमश: अधोलिखित जाप करें -