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________________ माला 201 जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...187 भाद्र शुक्ला दशमी के दिन एकासना करें। इस तप उद्यापन में इन्द्राणी की पूजा करें। संघ वात्सल्य एवं संघपूजा करें। • प्राचीन परम्परानुसार इस तप के दौरान अरिहन्त पद की आराधना करें जाप साथिया खमा. कायो. ॐ नमो अरिहंताणं 12 12 12 अर्वाचीन परम्परा में प्रचलित (लौकिक) तप 1. अशुभ निवारण तप किसी प्रकार की अशुभता का निवारण करने के लिए इस तप का निर्देश किया गया है। आचार्यों की मान्यतानुसार यह तप करने से कालान्तर के सभी अशुभ समाप्त हो जाते हैं। यह गृहस्थ आराधकों के लिए आगाढ़-तप है। तपसुधानिधि (पृ. 162) के अनुसार इस तप की निम्न विधि है - इसमें प्रथम एक उपवास करें, फिर दो नीवि, फिर तीन आयंबिल, फिर चार एकासना, फिर एक लुखा चुपडां, फिर पाँच एक सिक्थ, फिर चार एकलठाणा, फिर एक एकलधरा, फिर एक अलवाड़ा, फिर एक कवल का तप करें। इस प्रकार यह तप 25 दिनों में पूर्ण होता है। इसका यन्त्र इस प्रकार है - तप दिन-25 तप | उप.] नी. | आ. ए. लु.| एकसिक्थ एकलठाणा एकलधरा अलवाड़ा | कवल सं. | 1 | 2 | 3|4|1| 5 | 4 टिप्पणी 1. लूखा चुपड़ा की रीति यह है कि घी और पानी की एक-एक कटोरी भरकर उसे __ढंक कर रख दें। फिर अज्ञात व्यक्ति से एक कटोरी खुलवायें। यदि घी की खुले तो एकासना करें तथा पानी की खुले तो आयंबिल करें। 2. एक बार भोजन का जितना हिस्सा थाली में पड़ जाये या रख दिया जाये उतना ही खाना। 3. एकासना करते समय दाहिना हाथ और मुख के सिवाय किसी अंग को नहीं हिलाना। 4. एकलधरा की रीति यह है कि पानी का लोटा लेकर किसी सम्बन्धी के घर जायें। उस समय सम्बन्धी वर्ग में से कोई कहे - “आओ, पधारो" तो एकासना करना। यदि यह पूछ बैठे कि कैसे आये? तो उपवास करना। 5. अलेप पदार्थ।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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