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________________ 186...सज्जन तप प्रवेशिका कल्याणक का जाप करें तथा शेष क्रियाएँ अरिहन्त पद की आराधनानुसार करें - जाप साथिया खमा. कायो. माला श्री महावीरस्वामी पारंगताय नम: 12 12 12 20 16. नमस्कारफल तप यह पूर्व दर्शित नवकार-तप का लघु रूप है। जो शक्तिहीन 68 एकासना करने में असमर्थ हैं, उनके लिए इस तप का प्रावधान किया गया है। नवकार मन्त्र जैन धर्म का शाश्वत मंत्र है। अत: इसकी आराधना अवश्य करनी चाहिए। यदि नवकार मन्त्र के प्रत्येक अक्षर की आराधना नहीं कर सकते हैं तो उनके नौ पदों को निश्चित साधना चाहिए। यह तप नौ पद की अपेक्षा से कहा गया है। इसकी सामान्य विधि यह है - कृत्वा नवैकभक्तानि, तदुधापनमेव च। शक्तिहीनैर्निधेयं च, पूर्ववत्तत्समापनम् ।। आचारदिनकर, पृ. 373 इस तप में नमस्कार मन्त्र के क्रमश: नौ पदों के नव एकासना करें। इस प्रकार यह तप नौ दिन में पूर्ण होता है। उद्यापन - इस तप का उजमणा नवकार तप की भाँति करें तथा साथिया आदि आवश्यक क्रियाएँ भी उसी तरह करें। 17. अविधवादशमी तप यह तप स्त्रियों के द्वारा वैधव्य से रहित होने के लिए दशमी के दिन किया जाता है, इसलिए इसे अविधवादशमी तप कहते हैं। इस तप के करने से अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है, ऐसा आचार्यों का अभिमत है। आचारदिनकर में इसकी यह विधि निर्दिष्ट है - भाद्रपद शुक्ल-दशमी-दिने एकाशनमथो निशायां च । अंबा-पूजन-जागरण-कर्मणि सुविधिना कुर्यात् ।। आचारदिनकर, पृ. 373 इस तप में भाद्र शुक्ला दशमी के दिन एकासना करें। उस रात्रि में अम्बादेवी की प्रतिमा के समक्ष जागरण करते हुए उसकी पूजा करें। उसके समक्ष श्रीफल आदि द्रव्य सामग्री 10-10 की संख्या में चढ़ायें। इस प्रकार दस वर्ष तक
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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