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________________ 184...सज्जन तप प्रवेशिका पक्ष की तीज को एक उपवास- इस प्रकार पन्द्रह शुक्ल पक्षों में पन्द्रह तिथियों के पन्द्रह उपवास पूर्ण करें। इसमें दो सौ चालीस दिन लगते हैं। • प्रचलित विधि के अनुसार इस तप में मुनिसुव्रत भगवान का जाप करते है। साथिया आदि 12-12 करना चाहिए। क्योंकि इसमें अरिहन्त विशेष की ही आराधना की जाती है। जाप साथिया खमा. कायो. माला श्री मुनिसुव्रतस्वामी सर्वज्ञाय नमः 12 12 12 20 14. अमृताष्टमी तप ___यह अष्टमी अमृत-अभिषेक के द्वारा पहचानी जाती है। इस दिन अमृत जल के द्वारा अभिषेक किये जाने के कारण इस तप को अमृताष्टमी-तप कहते हैं। इस तप के फल से आरोग्य की प्राप्ति होती है। स्वरूपत: अमृत तत्त्व अपनी प्रकृति से ही रोग निवारक होता है, इसलिए यह तप आरोग्य लाभ का सूचक माना गया है। इस तप का अधिकारी गृहस्थ माना कहा गया है। इसकी दो विधियाँ निम्नोक्त हैंप्रथम रीति शुक्लाष्टमीषु चाष्टासु, आचाम्लादि तपांसि च। विदधीत स्वशक्तया च, ततस्तत्पूरणं भवेत्।। आचारदिनकर, पृ. 370 इस तप में शुक्ल पक्ष की आठ अष्टमियों को यथाशक्ति आयंबिल आदि तप करें। इस प्रकार यह तप आठ महीनों में पूर्ण होता है। द्वितीय रीति तपसुधानिधि (पृ. 210) के अनुसार इसमें 13 एकासना, 24 नीवि एवं 15 आयंबिल करने से यह तप पूर्ण होता है। उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर बृहद्स्नात्र पूजा रचायें, फिर घृत तथा दूध से भरे हुए दो कलश तथा एक मण का मोदक परमात्मा के आगे रखें। संघ वात्सल्य एवं संघपूजा करें। • प्रचलित सामाचारी के अनुसार इस तप में सिद्ध पद की आराधना करें। जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो सिद्धाणं 888 20
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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