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________________ 178...सज्जन तप प्रवेशिका दूसरी रीति शुक्लादि-पंचमीष्वेव, पंचमासेषु वै तपः । एकभक्तादिना वै कार्यमम्बापूजन पूर्वकम् ।। आचारदिनकर, पृ. 367 आचारदिनकर के निर्देशानुसार यह तप शुक्लपक्ष की पाँच पंचमियों में एकासना आदि तप करते हुए करें। . इस विधि के अनुसार भी भगवान नेमिनाथ और अम्बादेवी की पूजा अवश्य करनी चाहिए। उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर उत्तम धातुओं से अम्बादेवी की मूर्ति बनवाकर उसकी स्थापना करें और शास्त्रोक्त विधि से हमेशा उसकी पूजा करें। उस दिन साधर्मी वात्सल्य एवं संघपूजा भी करें। • प्रचलित परिपाटी में इस तप की आराधना निम्न विधि से करेंजाप साथिया खमा. कायो. माला श्री अम्बिका देव्यै नमः 12 12 12 20 ___ यह तप भगवान नेमिनाथ की शासन देवी से सम्बन्धित है तथा इसमें मुख्य आराध्य अथवा सर्वोच्च स्थानीय अरिहन्त परमात्मा ही है। इसलिए साथिया आदि 12-12 किये जाते हैं। 9. रोहिणी तप यह तप रोहिणी नक्षत्र में किया जाता है, इसलिए इसे रोहिणी-तप कहते हैं। इस तप की आराधना से स्त्रियों को अविधवापन और सौभाग्यसुख की प्राप्ति होती है। इस तपश्चर्या के द्वारा रोहिणी नामक राजकन्या ने अखण्ड सौभाग्य को प्राप्त किया था, इस विषयक वृत्तान्त संकलित प्रतियों से जानना चाहिए। आज स्त्रियों में रोहिणी तप खूब प्रचलित है। यह गृहस्थ साधकों का आगाढ़ तप है। विधिमार्गप्रपादि में उल्लिखित विधि इस प्रकार है - तहा रोहिणी-तवो रोहिणी-नक्खत्ते वासुपुज्ज जिण-विसेस-पूया पुरस्सर मुववासो सत्तमासाहि य, सत्तवरिसाणि। विधिमार्गप्रपा, पृ. 26
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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