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________________ जाप जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...177 तीर्थङ्करों की विशेष आराधना करें। उपवास के दिन उस तीर्थङ्कर की स्नात्र पूजा रचायें तथा अष्टप्रकारी पूजा सामग्री चढ़ायें। उद्यापन - इस तप की महिमा वर्धनार्थ पूर्णाहुति अवसर पर बृहद्स्नात्र पूजा करें, चाँदी की लोकनाली बनवाकर उसके ऊपर स्वर्णमय एवं रत्नमय मुकुट निर्मित कर रखें। उपवास संख्या के अनुसार सात-सात पकवान एवं फल आदि सर्व सामग्री परमात्मा के समक्ष रखें। साधर्मीभक्ति एवं संघपूजा करें। आचारदिनकर, पृ. 367 • प्रचलित परम्परानुसार इस तप के दिनों में जिस तीर्थङ्कर का तप प्रवर्तित हो उसके नाम का जाप आदि करें। साथिया खमा. कायो. माला श्री विमलनाथाय नमः 12 12 12 20 शेष गुणना इसी भाँति समझें। 8. अम्बा तप बाईसवें तीर्थङ्कर भगवान नेमिनाथ की शासन रक्षिका अम्बिका देवी मानी जाती है। यह तप उसी अम्बिका देवी के आराधनार्थ किया जाता है, इसलिए इसका नाम अम्बा तप है। इस तप के फलस्वरूप अम्बा देवी से वरदान प्राप्त होता है। वर्तमान में इस देवी के नाम का प्रभुत्व अत्यधिक है। यह तप गृहस्थों के लिए करणीय है। ___ यह तप दो रीतियों से किया जाता है - प्रथम रीति तहा अंबा-तवो पंचसु किण्ह पंचमीसु एगासणाइ-नेमिनाह अंबपूया-पुव्वं किज्जइ।। विधिमार्गप्रपा, पृ. 26 विधिमार्गप्रपा के मतानुसार यह तप किसी भी शुभ मास की कृष्ण पंचमी से प्रारम्भ कर लगातार पाँच महीनों तक पाँच कृष्ण पंचमियों में एकासना आदि के द्वारा करें। उस दिन नेमिनाथ भगवान और अम्बा देवी की पूजा भी अवश्य करें। इस प्रकार प्रथम विधि के अनुसार यह तप पाँच माह की कृष्ण पंचमियों में एकासन आदि के द्वारा किया जाता है।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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