SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 176...सज्जन तप प्रवेशिका तथा उस पर गहुँली करके स्वर्ण, मणि, मुक्ताफल, सुपारी आदि से भरे हुए घट की स्थापना करें। तत्पश्चात एक पक्ष (15 दिन) तक उसकी नित्य पूजा करें। प्रतिदिन परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा करके कुम्भ में अंजलि भर अक्षत डालें। प्रतिदिन स्वशक्ति के अनुसार बियासना, एकासना आदि का प्रत्याख्यान करें एवं नृत्य गीतोत्सव आदि करते हुए पर्युषण पर्यन्त यह तप करें। इस तप की चार परिपाटी चार वर्ष में पूर्ण होती है। वर्तमान में यह तप भाद्र कृष्णा चतुर्थी से संवत्सरी पर्यन्त सोलह दिन एकासन द्वारा किया जाता है। उद्यापन – इस तप के बहुमानार्थ चौथी परिपाटी के अन्त में बृहद् स्नात्र पूजा रचायें, परमात्मा के आगे विविध जाति के पकवान आदि रखें तथा साधर्मी भक्ति एवं संघपूजा करें। • गीतार्थ मुनियों के अनुसार इस तपोयोग में ज्ञान पद की आराधना करनी चाहिए। इन दिनों ज्ञान पद सम्बन्धी विशिष्ट क्रिया भी होती है। विस्तार भय से उसका वर्णन 'तपसुधानिधि' आदि संकलित पुस्तकों से जानें। जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ ह्रीं क्लीं नमो नाणस्स 51 51 51 20 7. मुकुटसप्तमी तप __यह तप सात महीनों तक सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है तथा उद्यापन में मुकुट बनवाकर चढ़ाते हैं। इसलिए इसे मुकुटसप्तमी तप कहते हैं। इस तप के पुण्य योग से वांछित वस्तुओं की प्राप्ति होती है। यह आगाढ़ तप गृहस्थों के लिए निर्दिष्ट किया गया है। इसकी प्राप्त विधि निम्न प्रकार है - आषाढ़ादि च पौषान्तं, सप्तमासान् शितीष्वपि । सप्तमीषूपवासाश्च, विधेयाः सप्तसंख्यका ।। आचारदिनकर, पृ. 367 इस तप में आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं पौष महीनों की कृष्णपक्ष की सप्तमी के दिन उपवास करें। __ इसमें अनुक्रम से 1. विमलनाथ 2. अनन्तनाथ 3. चन्द्रप्रभु या शान्तिनाथ 4. नेमिनाथ 5. ऋषभदेव 6. महावीरस्वामी और 7. पार्श्वनाथ - इन सात
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy