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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...175 • जीत परम्परानुसार इस तप के दिनों में प्रतिदिन अरिहन्त पद का गुणना आदि करें। जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो अरिहंताणं 12 12 12 20 6. अक्षयनिधि तप __जिसका कभी क्षय न हो ऐसी निधि को अक्षयनिधि कहते हैं। यह तप द्रव्यत: भौतिक निधि एवं आध्यात्मिक निधि प्राप्त करने के प्रयोजन से किया जाता है। इस तप के प्रभाव से मनवांछित निधि की प्राप्ति होती ही है इसलिए इसे अक्षयनिधि-तप कहते हैं। ___ यह आगाढ़ तप श्रावकों के लिए करणीय बतलाया गया है। वर्तमान में यह तप अत्यधिक प्रचलित है। इसके दो प्रकारान्तर निम्न हैंप्रथम प्रकार ____ तहा जिण-पुरओ कलसो पइट्ठियो मुट्ठीहिं पइ-दिण-खिप्प-माणतंडुलेहिं जावइय-दिणेहिं पूरिज्जइ, तावइय-दिणाणि एगासणगाई अक्खय-निहि-तवो। विधिमार्गप्रपा, पृ. 27 _ विधिमार्गप्रपा के निर्देशानुसार भाद्र कृष्णा चतुर्थी के दिन से यह तप प्रारम्भ करें। उस दिन तीर्थङ्कर प्रतिमा के आगे एक कलश की स्थापना करें, फिर उसमें प्रतिदिन प्रमाणोपेत एक मुट्ठी चावल डालते जायें, जितने दिनों में वह कलश भरे उतने दिनों तक एकासना आदि तप करें, वह अक्षयनिधि-तप कहलाता है। इस विधि में दिनों की गिनती नहीं होती। जितने दिनों में कलश भरे उतने दिन तप किया जाता है। दूसरा प्रकार घटं संस्थाप्य देवाने, गन्ध-पुष्पादि-पूजितम्। ___तपो विधीयते पक्षं, तदक्षयनिधिः स्फुटम्।। आचारदिनकर, पृ. 367 आचारदिनकर के मतानुसार यह तप भादवा वदि चतुर्थी को प्रारम्भ करें। उस दिन जिनेश्वर परमात्मा के आगे की भूमि को गाय के गोबर से शुद्ध करके
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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