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________________ 174...सज्जन तप प्रवेशिका सर्व तरह के शुभत्व की प्राप्ति होती है । यह आगाढ़ तप श्रावकों के लिए बताया गया है। इसके निम्नलिखित तीन प्रकारान्तर देखे जाते हैं प्रथम प्रकार आयइजणगो वि एवं (एगासणपारणेणं बत्तीसं आयंबिलाणि) चिय नवरं वंदणग- पडिक्कमण- सज्झायकरण - साहुसाहुणि- वेयावच्चाइ - सव्वकज्जे अणिगूहिय-बल वीरियस्स अच्छंत परिसुद्धो हवइ । विधिमार्गप्रपा, पृ. 25 प्रथम विकल्प के अनुसार इस तप में बत्तीस आयम्बिल एकान्तर एकाशन के पारणे से करें। इस तरह यह तप 64 दिनों में पूर्ण होता है। इस तपश्चरण काल में देववन्दन, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, साधु-साध्वी वैयावृत्य आदि शुभ कार्य अन्तरंग शक्ति को छिपाये बिना अत्यन्त शुद्धि पूर्वक करने चाहिए। द्वितीय प्रकार एगं पुण एवमाहंसु अणिगूहिय-बल-वीरियस्स निरंतर - बत्तीसायंबिल- पमाणो एगासणं तरिय बत्तीसोववायप्पमाणे वा आयइ-जणगोत्ति । विधिमार्गप्रपा, पृ. 25 दूसरी विधि के अनुसार इस तप में स्वशक्ति को छिपाये बिना लगातार बत्तीस आयम्बिल करें अथवा एकासन के अन्तर से बत्तीस उपवास परिमाण तप करें। इस विकल्प में 32 या 64 दिन लगते हैं। तृतीय प्रकार - निरंतरैः । कार्यं द्वात्रिंशदाचामलैः स्वसत्वेन एवं स्यादायतिशुभं, तप उद्यापनान्वितम् ।। आचारदिनकर, पृ. 366-67 तीसरी विधि के अनुसार यह तप निरन्तर बत्तीस आयंबिल करने से पूर्ण होता है। उद्यापन इस तप के पूर्ण होने पर बृहद् स्नात्र पूजा करें, 24-24 की संख्या में पकवान, फल आदि चढ़ायें तथा साधर्मीभक्ति एवं संघपूजा करें। -
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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