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________________ 160...सज्जन तप प्रवेशिका 47. अखण्ड दशमी तप ____ इस तप के सुप्रभाव से अखण्ड सुख (मोक्ष सुख) की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे अखण्ड दशमी तप कहा गया है। यह श्रावक-श्राविकाओं के करने योग्य आगाढ़ तप है। आचार्य वर्धमानसूरि ने इसकी निम्न विधि कही है शुक्लासु दशसंख्यासु, निजशक्त्या तपोविधिम्। विदधीत ततः पूर्तिस्तस्य संपद्यते क्रमात्।। आचारदिनकर, पृ. 370 इस तप में शक्ल पक्ष की दश दशमियों में अपनी शक्ति के अनसार एकासन आदि तप करें। यह तप 10 महीनों में पूर्ण होता है। वर्तमान में यह तप प्राय: एकासना द्वारा किया जाता है। उद्यापन – इस तप को आत्मसात करने हेतु उद्यापन में परमात्मा के आगे दस-दस की संख्या में पकवान, फल आदि रखें। अखण्ड स्वस्तिक बनाकर उस पर नैवेद्य रखें। अखण्ड वस्त्र पहनकर चैत्य की भमती में घी की तीन अखण्ड धारा दें। साधर्मीवात्सल्य एवं संघ पूजा करें। • प्रचलित विधि के अनुसार इस तपश्चरण में प्रभु पार्श्वनाथ का स्मरण करते हुए अरिहन्त पद की आराधना करें - जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ ह्रीँ पार्श्वनाथाय नमः 12 12 12 20 48. कर्मचूर्ण तप चार घाति कर्मों का क्षय करने के उद्देश्य से जो तप किया जाता है उसे कर्मचूर-तप कहते हैं। इस तप के करने से प्रगाढ़ कर्म शिथिल हो जाते हैं और विपुल मात्रा में बंधे हुए कर्म न्यून हो जाते हैं। फिर वह आत्मा शनैः शनै: सभी कर्मों से सर्वथा मुक्त हो जाती है। यह तप गृहस्थ एवं श्रमण दोनों के लिए हितकारी है। विधि उपवासत्रयं कुर्यादादावन्ते निरन्तरम् । मध्ये षष्ठिमिता कुर्यादुपवासाँश्च सान्तरान् ।। आचारदिनकर, पृ. 372
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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