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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...155 इस तप में आश्विन शुक्ला अष्टमी से पूर्णिमा तक के आठ दिनों में यथाशक्ति उपवास-एकासन आदि करें। एक वर्ष में एक परिपाटी (ओली) पूर्ण होती है। इस तरह आठ वर्षों में आठ ओली करने पर यह तप पूर्ण होता है। इसमें कुल 64 दिन लगते हैं। इस तप में प्रतिवर्ष परमात्मा के आगे सोने की सीढ़ी बनवाकर रखें तथा अष्टप्रकारी पूजा करें। इस तरह आठ वर्ष तक आठ सीढ़ियाँ बनाएँ। उद्यापन उज्जवणे-कणगमय-अट्ठावय-पूया कणग-निस्सेणी य कायव्व पक्कन्नाइ फलाइ चउवीस-वत्थूणि जत्थ सो अट्ठावय-तवो। विधिमार्गप्रपा, पृ. 29 उद्यापने चतुर्विंशति-संख्या, पक्वान्न फल-जातीनां । बृहत्स्नात्र विधि-पूर्वकं ढौकनं संघ-वात्सल्यं-संघ-पूजा च ।। आचारदिनकर, पृ. 369 इस तप के अनुमोदनार्थ उद्यापन में स्वर्णमय अष्टापद पर्वत की पूजा करें और सोने की सीढ़ी बनवाकर चौबीस तीर्थङ्करों के सामने चढ़ायें। बृहत्स्नात्र पूजा रचायें। चौबीस-चौबीस विभिन्न जाति के पकवान एवं फल चढ़ाये। साधर्मिक वात्सल्य एवं संघ पूजा करें। • सुविहित परम्परानुसार इस तप के दिनों में निम्नलिखित क्रियाएँ करें - साथिया खमा. कायो. माला श्री अष्टापद तीर्थाय नमः 8 8 8 20 43. मोक्षदण्ड तप यहाँ मोक्षदण्ड का अर्थ है गुरु का दण्डा। यह दण्डा मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर होने का सूचक है, अत: मोक्ष उपलब्धि में पुष्ट निमित्त बनता है। इस दण्डे को आधार मानकर जो तप किया जाता है उसे मोक्षदण्ड-तप कहते हैं। यह तप गृहस्थ आराधकों के लिए करणीय कहा गया है। इसके फल से सर्व प्रकार की विपत्तियाँ दूर होती हैं। इस सम्बन्ध में तीन विधियाँ प्रचलित है - जाप
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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