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154...सज्जन तप प्रवेशिका
इसे अष्टापद पावड़ी-तप कहते हैं। इस तप के फल से दुर्लभ मोक्षपद की प्राप्ति होती है। यह पर्वतीय स्थान मोक्ष-प्राप्ति का अनन्तर कारण है, क्योंकि प्रथम तीर्थङ्कर भगवान ऋषभदेव ने छह उपवास का तप करके एक हजार मुनियों के साथ यहीं मोक्ष प्राप्त किया था। तत्पश्चात भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती ने वहाँ सिंह निषद्या नामक भव्य जिनमन्दिर का निर्माण करवाया और उस जिनालय में वर्तमान के चौबीस तीर्थङ्करों की उनके देह प्रमाण के अनुसार संस्थान, रंग और लांछनयुक्त प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की। उसमें भी दक्षिण दिशा में 1 से 4 तीर्थङ्करों के बिम्ब, पश्चिम दिशा में 5 से 12 तीर्थङ्करों के बिम्ब, उत्तर दिशा में 13 से 22 तथा पूर्व दिशा में 23 से 24 तीर्थङ्करों के बिम्ब प्रतिष्ठित किये। सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र में “चत्तारि अट्ठ दस दोय' का यह पाठ उक्त सन्दर्भ में ही कहा गया है।
इस पर्वत का दूसरा नाम कैलाश पर्वत है। आचार्य हेमचन्द्र ने 'अभिधानचिन्तामणिकोश' के चौथे भूमिकाण्ड में अष्टापद पर्वत को कैलाश पर्वत कहा है। आचार्य जिनप्रभसूरि ने 'विविधतीर्थकल्प' के अन्तर्गत ‘अष्टापद-गिरि-कल्प' में इसी बात की पुष्टि की है। उन्होंने लिखा है - "तीसे अ उत्तरदिसाभाए बारहजोयणेसु अट्ठावओ नाम केलासपराभिहाणो रम्भो नगवरो अट्ठजोयणुच्चा।" अर्थात अयोध्या नगरी से उत्तर दिशा की तरफ बारह योजन दूर अष्टापद नामक रम्य पर्वत है जिसकी उँचाई आठ योजन है और उसका दूसरा नाम कैलाश पर्वत है। ___ आधुनिक भूगोल के अनुसार कैलाश पर्वत हिमालय पर तिब्बत देश में मानसरोवर की उत्तर दिशा में 25 मील की दूरी पर स्थित है। विद्वानों की मान्यतानुसार इस पर्वत का शिखर प्रति समय बर्फ से ढका रहता है, अत: अत्यधिक ठण्ड के कारण इस पर्वत पर आरोहण नहीं किया जा सकता। यह तप गृहस्थों के करने योग्य है। इसकी उपलब्ध विधि इस प्रकार है
तहा आसोय-सियट्ठमिमाइ अट्टदिणे एगासणाइ तवोत्ति । पढमा पाउडी। एवं अट्ठसु वरिसेसु अट्ठ पाउडिओ।।
विधिमार्गप्रपा, पृ. 29 अश्विनाष्टाह्निकास्वेव, यथाशक्ति तपः क्रमै । विधेयमष्टवर्षाणि, तपः अष्टापदः परं।।
आचारदिनकर, पृ. 369