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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...151 है। यह तप सर्व साधकों के लिए आचरणीय है। इसकी सामान्य विधि निम्नोक्त है आरभ्य पौषदशमी पर्यन्ते माघशुक्लपूर्णायाः । स्नात्वाऽर्हन्तं संपूज्य, चैकभक्तं विदध्याच्च ।। आचारदिनकर, पृ. 364-65 यह तप पौष वदि दशमी (खरतरगच्छ के अनुसार माघ वदि दशमी) के दिन से आरम्भ करके माघ सुदि पूर्णिमा तक निरन्तर एकासन करते हुए करें। इस तप में प्रतिदिन परमात्मा की पूजा करने के बाद एकासना करें। इस प्रकार यह तप चार वर्ष तक किया जाता है। ___ उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर बृहत्स्नात्रपूजा पूर्वक स्वर्ण और मणिगर्भित घृत का मेरू बनाकर परमात्मा के आगे रखें। संघभक्ति एवं साधर्मीभक्ति करें। • प्रचलित विधि के अनुसार इस तप के दिनों में अरिहन्त पद की आराधना करें - जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो अरिहंताणं 12 12 12 20 40. महावीर तप भगवान महावीर ने छद्मस्थ अवस्था में जो तप किया, वह महावीर-तप कहलाता है। दिन गणना के अनुसार भगवान ने 12 वर्ष, 6 मास, 15 दिन कठोर तपश्चर्या की थी। उसका सामान्य विवरण इस प्रकार है • एक - छहमासी • दो - छह माह में पाँच दिन कम, • नौ - चौमासी तप • दो - तीन मासी तप • बहत्तर - पाक्षिक तप • एक-एक - भद्र, महाभद्र, सर्वतोभद्र प्रतिमाएँ • दो - ढाई मासी तप • छह – दोमासी तप . दो - डेढ़ मासी तप • बारह – मासक्षमण • बारह - अट्ठम (तेला) • दो सौ उनतीस - छ? (बेला) इस तरह 12% वर्ष के छद्मस्थ साधना काल में कुल 349 दिन आहार लिया। शेष दिनों में उपवास आदि कठिन तपस्याएँ की। इस तप के फल से प्रगाढ़ कर्मों का क्षय होता है। आचार्य वर्धमानसूरि ने पंचम काल के आराधकों के लिए महावीर तप की
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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