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150...सज्जन तप प्रवेशिका का बन्ध होता है। यह तप पंचकल्याणकों की विशिष्ट आराधना के उद्देश्य से किया जाता है। विधि
एक भक्ताष्टकं कार्यमहत्कल्याणकः पंचके । प्रत्येकं पूर्यते तच्च, बृहदष्टाह्निका तपः ।।
आचारदिनकर, पृ. 364 इसमें वर्तमान काल के भरत क्षेत्रीय चौबीस तीर्थङ्करों के कल्याणकों की आराधना हेतु सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव के एक-एक कल्याणक को लक्ष्य में रखकर आठ-आठ एकासना करें। इस प्रकार 5x8 से गुणा करने पर एक तीर्थङ्कर के निमित्त चालीस एकासना होते हैं। इसी भाँति शेष तेईस तीर्थङ्करों के पाँच-पाँच कल्याणकों को लक्ष्य में रखकर चालीस-चालीस एकासना करें।
यह तप कुल 960 दिन में पूरा होता है। कदाचित एक तीर्थङ्कर से दूसरे तीर्थङ्कर के कल्याणक-तप के बीच में व्यवधान पड़े तो कोई आपत्ति नहीं है, परन्तु चालीस एकासना तो एक साथ ही करें।
उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर बृहत्स्नात्रपूजा करें, एक सौ बीस - एक सौ बीस सर्व जाति के पकवान एवं फलादि अर्पित करें, साधुओं को अन्नपान, वस्त्र आदि का दान देवें तथा साधर्मीभक्ति एवं संघपूजा करें।
• प्रचलित परम्परा के अनुसार इस तप के दिनों में जिस तीर्थङ्कर के, जिस कल्याणक का तप चल रहा हो उस दिन उस तीर्थङ्कर के उसी कल्याणक की 20 माला गिननी चाहिए तथा साथिया आदि 12-12 करने चाहिए। उदाहरणार्थ ऋषभदेव का जाप निम्नानुसार करें - 1. च्यवन कल्याणक - श्री ऋषभनाथ परमेष्ठिने नमः 2. जन्म कल्याणक - श्री ऋषभनाथ अर्हते नमः 3. दीक्षा कल्याणक - श्री ऋषभनाथ नाथाय नमः 4. केवलज्ञान कल्याणक - श्री ऋषभनाथ सर्वज्ञाय नमः 5. निर्वाण कल्याणक - श्री ऋषभनाथ पारंगताय नमः 39. माघमाला तप
यह तप माघ मास में माला रूप में किया जाता है, इसलिए इसका नाम माघमाला तप है। इस तप के करने से शाश्वत सुख (मोक्ष सुख) की प्राप्ति होती