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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...149
ए.1
मनोरम सर्वतोभद्र सुविशाल सौम्यग्रे सुमनस
ए. 1
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ब्रह्म माहेन्द्र सनत्कुमार ईशान सौधर्म मध्यलोक
प्रीतिकर
ए. 1 ए. (12 देवलोक) उप. 1 ए. 1 ए. 1
नी.(9 ग्रैवेयक)
आदित्य
महात्तम
ए. 1
अच्युत
तमःप्रभा
ए. 1
आरण प्राणत
B
ए.1
.
आणत
ए. 1 ए. 1 ए. 1 ए. (सात नरक)
धूमप्रभा पंकप्रभा बालुका शर्करा रत्नप्रभा
E
सहस्रार शुक्र लांतक
B
उद्यापन - इस तप के उद्यापन में बृहद्स्नात्र पूजा करें। चाँदी की सात पृथ्वी, स्वर्ण का मध्यलोक, विविध मणियों से युक्त बारह कल्प, नौ ग्रैवेयक
और पाँच अनुत्तर विमान तथा स्फटिक रत्न की सिद्धशिला बनवाकर उन पर स्वर्ण एवं रत्नों की स्थापना करें। यह सब सामग्री जिनप्रतिमा के आगे पुरुषप्रमाण अक्षत का ढेर करके उस पर रखें। नाना प्रकार के पकवान चढ़ाएँ। साधर्मी वात्सल्य एवं संघ पूजा करें।
• गीतार्थ परम्परानुसार लोकनाली तप में अरिहन्त पद की आराधना करनी चाहिएजाप
साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो अरिहंताणं 12 12 12 20 38. कल्याणक अष्टाह्निका तप
इस तप नाम से सूचित होता है कि च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण - इन पाँच कल्याणकों से संयुक्त हुए आठ-आठ दिन का तप करने से यह कल्याणक अष्टाह्निका तप कहलाता है। इस तप के द्वारा तीर्थङ्कर नामकर्म