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________________ 148...सज्जन तप प्रवेशिका अलोकाकाश अनन्त है। चौदह रज्जू के मध्यभाग में त्रस जीवों की प्रधानता वाली चौदह राजू प्रमाण लम्बी और एक राजू प्रमाण चौड़ी त्रसनाड़ी है। इस वसनाड़ी के भीतरी भाग में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक त्रस एवं स्थावर सभी प्रकार के जीव रहते हैं। इसके बाहर के लोक विभाग में केवल एकेन्द्रिय (स्थावर) जीव ही निवास करते हैं। यह त्रसनाड़ी ही लोकनाली कहलाती है। लोकनाली के क्रम से जो तप किया जाता है उसे लोकनाली तप कहते हैं। इस लोकनाली में तीनों लोक समा जाते हैं, अत: तीनों लोक को आश्रित करके इस तप की आराधना की जाती है। इस तप के फलस्वरूप परम ज्ञान की प्राप्ति होती है। विधि सप्तपृथिव्यो मध्यलोकः, कल्पा अवेयका अपि । अनुत्तरा मोक्षशिला, लोकनालिरितीर्यते ।। एकभक्तान्युपवास, एक भक्तानिनीरसाः । आचाम्लान्युपवासश्चक्रेक्रमात्तेषु तपः स्मृतम् ।। आचारसंहिता, पृ. 363 इसमें सर्वप्रथम अधोलोक के क्रम से रत्नप्रभादि सात नरक पृथ्वी को लक्ष्य में रखकर निरन्तर सात एकासन करें। तत्पश्चात मध्यलोक को लक्ष्य में रखकर एक उपवास करें। उसके बाद ऊर्ध्वलोक की अपेक्षा बारह कल्प को लक्ष्य में रखकर निरन्तर बारह एकासना करें। फिर नौ ग्रैवेयक को लक्षित करके नौ नीवि करें। फिर पाँच अनुत्तर विमान को लक्ष्य में रखकर पाँच आयम्बिल करें तथा सिद्धशिला को लक्ष्य में रखकर एक उपवास करें। इस तरह 19 एकासना, 9 नीवि, 5 आयम्बिल और 2 उपवास कुल पैंतीस दिनों में यह तप पूरा होता है। इस तप का यन्त्र इस प्रकार है - उप. 1 सिद्धशिला | आ.1 वैजयन्त सर्वार्थसिद्ध आ. 1 (5 अनुत्तर) विजय अपराजित नी.1 सुदर्शन आ. 1 नी.1 सुप्रतिबद्ध आ.1 आ.1 जयन्त
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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