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152...सज्जन तप प्रवेशिका
निम्न विधि कही है -
महावीर-तपो ज्ञेयं, वर्षाणि द्वादशैव च । त्रयोदशैव पक्षाश्च, पंचकल्याण-पारणे ।।
आचारदिनकर, पृ. 365 इसमें बारह वर्ष और तेरह पक्ष पर्यन्त निरन्तर दस-दस उपवास के बाद पारणा करते हुए यह तप पूर्ण करें। इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्र पूजा करें, महावीरस्वामी की प्रतिमा के आगे स्वर्णमय वटवृक्ष रखें तथा साधर्मी वात्सल्य एवं संघ पूजा करें। - • प्रचलित गीतार्थ विहित परम्परानुसार इस तप के दिनों में प्रतिदिन महावीर स्वामी का गुणना करते हुए अरिहन्त पद का ध्यान करें। जाप
साथिया खमा. कायो. माला श्री महावीर स्वामिने नम: 12 12 12 20 41. लक्षप्रतिपद तप ___ यह तप प्रतिपदा (एकम) से प्रारम्भ होता है। इस तप के करने से अनगिनत अक्षय लक्ष्मी (आत्मगुणों की सम्पदा) की प्राप्ति होती है। इस कारण इसे लक्षप्रतिपद-तप कहते हैं। यह आगाढ़ तप गृहस्थ आराधकों के लिए निरूपित किया गया है।
आचारदिनकर में इसकी निम्न विधि वर्णित है
शुक्ल प्रतिपदः सूर्य, संख्यया एकाशनादिभिः । समर्थनीयास्तपसि, लक्षप्रतिपदाख्यके ।।
आचारदिनकर, पृ. 365 यह तप शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन यथाशक्ति एकासन आदि करते हुए करें। इस तरह बारह प्रतिपदा (एक वर्ष) पर्यन्त करने से यह तप पूर्ण होता है।
उद्यापन
उद्यापने पूजापूर्वं लक्षधान्यं ढौकनीयं। लक्षसंख्याधान्यानां निबन्यो यथा- चोषामाणा 5, पाइली 1, मुगसेइ 1, पाइली 2, मोठसेइ 1, पाइली 2, जवसेइ 2, तिलपाइ 7, गोधूमसेइ 8, चउलासेइ 3, चणासेइ 1,