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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-1 -fafaret...145 उपवास एकान्तर एकासन से पारणा करते हुए करें और फिर अन्त में तेला करके एकासन से पारणा करें। यह तप 38 उपवास और 34 पारणा पूर्वक कुल 72 दिनों में पूर्ण होता है । उद्यापन इस तप के सम्मानार्थ बृहत्स्नात्र की विधि पूर्वक परमात्मा की पूजा करें। बत्तीस-बत्तीस की संख्या में पकवान, फल, पुष्प आदि चढ़ायें । संघ वात्सल्य एवं संघ पूजा करें। • प्रचलित परम्परानुसार इस तप के दिनों में अरिहन्त पद की आराधना हेतु निम्न जाप आदि करें जाप ॐ नमो अरिहंताणं 35. च्यवन एवं जन्म तप च्यवन को दृष्टिगत रखकर जो तप किया जाता है उसे च्यवन-तप कहते हैं। इसमें चौबीस तीर्थङ्करों को ध्यान में रखकर उनके कल्याणक दिनों का ध्यान रखे बिना शक्ति के अनुसार चौबीस उपवास एकान्तर पारणे से किये जाते हैं। इस तप के करने से सद्गति की प्राप्ति होती है । यह तप साधु एवं गृहस्थ दोनों के लिए अनागाढ़ रूप से परिपालनीय है। किसी भी शुभ दिन से इस तप का प्रारम्भ कर सकते हैं। आचारदिनकर में इस तप सम्बन्धी मूल पाठ निम्न प्रकार से दिया गया है - - साथिया खमा. 12 12 चतुर्विंशतितीर्थेशानुद्दिश्य च्यवनात्मकं । विना कल्याणकदिनैः कार्यानशनपद्धतिः । । कायो. 12 माला 20 आचारदिनकर, पृ. 362 उद्यापन - इस तप के उद्यापन में विधिपूर्वक बृहत्स्नात्र पूजा रचायें, मूलनायक परमात्मा की पूजा करें, जिनेश्वर प्रतिमा के आगे 24-24 पकवान, फल आदि चढ़ाएँ तथा संघ वात्सल्य एवं संघ पूजा करें। आचार्य वर्धमानसूरि द्वारा उल्लिखित जन्म तप भी इसी प्रकार किया जाता है। उक्त दोनों तपों का यन्त्र न्यास इस प्रकार है
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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