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________________ 144... सज्जन तप प्रवेशिका उद्यापन इस तप की विशिष्ट भक्ति के लिए बृहत्स्नात्र पूजा रचायें, स्वर्ण के पाँच मेरू बनवाकर परमात्मा के आगे रखें, पच्चीस-पच्चीस की संख्या में पकवान, फल आदि अर्पित करें तथा साधर्मिक वात्सल्य एवं संघ पूजा करें। जीतव्यवहार के अनुसार इस तप के दिनों में निम्न जाप आदि करें - क्रम - जाप 1. श्री सुदर्शनमेरू जिनाय नमः 2. श्री विजयमेरू जिनाय नमः 3. श्री अचलमेरू जिनाय नमः 4. श्री मंदरमेरू जिनाय नमः 5. श्री विद्युन्मालिमेरू जिनाय नमः विधि साथिया खमा. कायो, माला LO LO LO 5 LO 5 5 LO 5 5 LO 5 LO 5 10 5 आचार्य वर्धमानसूरि ने इसकी निम्न विधि दर्शायी है - - LO उपवास त्रयं कृत्वा, द्वात्रिंशदुपवासकाः । एक- भक्तांतरास्तस्मादुपवास त्रयं वदेत् ।। 5 LO 5 LO 5 LO 5 34. बत्तीस कल्याणक तप जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्रीय बत्तीस विजयों में उत्कृष्टकाल के समय बत्तीस तीर्थङ्कर एक साथ विचरण करते हैं। यह तप उन तीर्थङ्करों के केवलज्ञानकल्याणक के उद्देश्य से किया जाता है तथा इस तप में बत्तीस उपवास किये जाते हैं इसलिए इसे बत्तीस कल्याणक - तप कहते हैं। इस तप के करने से तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन होता है तथा तीर्थङ्करों के केवलज्ञान कल्याणक की आराधना होने से उसके फलस्वरूप ज्ञानावरणीय आदि घाति कर्मों का क्षय होता है। यह आगाढ़ तप साधुओं एवं गृहस्थों उभय के लिए सेवनीय है। 20 22220 आचारदिनकर, पृ. 362 इसमें सर्वप्रथम तेला करके एकासन से पारणा करें। तत्पश्चात बत्तीस
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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