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________________ 142...सज्जन तप प्रवेशिका अनुशासित रखना 7. सत्य - हितकर व परिमित बोलना 8. शौच - विचारों से पवित्र रहना 9. अकिंचन – बाह्य एवं आभ्यन्तर सर्व परिग्रह का त्याग करना 10. ब्रह्मचर्य-विषय-वासनाओं का त्याग करना। इस तप के फल से विशुद्ध धर्म की प्राप्ति होती है तथा यह तप आत्मधर्म की रमणता हेतु किया जाता है। इसकी तपश्चरण विधि निम्न प्रकार है - संयमादौ दशविधे धर्मे, एकान्तरा अपि । क्रियन्त उपवासा यत्तत्तपः पूर्यते हि तैः ।। आचारदिनकर, पृ. 359 इस तप में दस उपवास एकान्तर पारणा से करने पर कुल 20 दिन लगते हैं। उद्यापन - इस तप की पूर्णाहति पर सामान्यत: बृहत्स्नात्र विधि से परमात्मा की पूजा करें, जिन प्रतिमा के आगे दस-दस पकवान, फल, पुष्प आदि चढ़ायें तथा चतुर्विध संघ की सेवा-भक्ति करें। • गीतार्थ आचरणानुसार इस तप के दिनों में प्रतिदिन निम्नलिखित जापादि करें - साथिया | खमा. | कायो. माला 1. | शान्ति गुणधराय नमः 2. | मार्दव गुणधराय नमः 3. | आर्जव गुणधराय नमः 4. | मुक्ति गुणधराय नमः 5. | तपो गुणधराय नमः | 10 | 10 | 10 6. | संयम गुणधराय नमः 7. | सत्य गुणधराय नमः 8. | शौच गुणधराय नमः | अकिंचन गुणधराय नमः 10. | ब्रह्मचर्य गुणधराय नमः क्रम जाप
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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