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जाप
माला
जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...141 चार परमेष्ठियों की आराधना भी इसी प्रकार करें। इस तरह पैंतीस दिनों में यह तप पूरा होता है। ___यह तप आचारदिनकर में ही वर्णित है। यद्यपि नवकार तप में भी पंच परमेष्ठी का स्मरण किया जाता है, किन्तु वहाँ मुख्य रूप से नवकार-मन्त्र के अक्षरों की आराधना की जाती है जबकि इसमें पाँच पदों का स्मरण करते हैं। ___ उद्यापन - इस तप के उद्यापन में ज्ञान पंचमी की तरह पाँच-पाँच पुस्तकें आदि परमात्मा के समक्ष रखें। पाँच पदों की आहार आदि से भक्ति करें। पाँचपाँच मोदक, फल आदि चढ़ायें एवं संघ पूजा करें।
• गीतार्थ विहित परम्परानुसार इस तप के दिनों में निम्न गुणना आदि करें।
साथिया | खमा. | लोगस्स ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नमो सिद्धाणं ॐ नमो आयरियाणं ॐ नमो उवज्झायाणं
ॐ नमो लोए सव्व साहूणं | 32. दशविध यतिधर्म तप
दस प्रकार के यतिधर्म की आराधना के लिए जो तप किया जाता है उसे दसविध यतिधर्म-तप कहते हैं। सामान्य तौर पर इस तप का आचरण गृहस्थ एवं साधु दोनों के द्वारा किया जाना चाहिए, फिर भी विशेषतया साधुओं के पालन करने योग्य होने से यह ‘दशविध यतिधर्म तप होता है और आत्मा क्रोधादि वैभाविक दशा से विमुख होकर स्वभाव में स्थिर होती है। दस यतिधर्म का सामान्य स्वरूप इस प्रकार है - ___ 1. खंती- क्षमा रखना 2. मार्दव - अभिमान नहीं करना 3. आर्जव - सरल हृदयी होना, माया-कपट नहीं करना 4. मुक्ति - लोभ नहीं करना 5. तप- इच्छाओं का निरोध करना 6. संयम - इन्द्रियों को