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________________ 138... सज्जन तप प्रवेशिका निमित्त नौ एकासना करें। यहाँ अन्तिम दोनों चूलाओं के एक साथ सोलह और सत्रह एकासना करें। इस प्रकार 7+5+7+7+9+16+17 = 68 एकासनों के द्वारा यह तप किया जाता है। यदि सामर्थ्य हो तो 68 एकासने निरन्तर करें, अन्यथा एक-एक पद के पश्चात पारणा करते हु करें। द्वितीय प्रकार संख्यैक भक्तकैः । च तत्पादसंख्यायाश्च प्रमाणतः ।। तत्र प्रथमपदे वर्ण संख्या सप्तक भक्तानि द्वितीय पदे पंच, तृतीये सप्त, चतुर्थे सप्त, पंचमे नव, षष्टेऽष्टौ, सप्तमेऽष्टौ, अष्टमेऽष्टौ, अष्टमेऽष्टौ नवमे नववाष्टौ वा गुर्वाम्नायविशेषेण एवं नमस्कार - तपश्चाष्टषष्टि विधीयते एकभक्तान्यष्टषष्टिः । आचारदिनकर, पृ. 357 आचारदिनकर के अनुसार भी यह तप अक्षर संख्या के अनुरूप 68 एकासनों द्वारा किया जाता है जैसे कि पहले पद की अक्षर- संख्या सात, दूसरे की पाँच, तीसरे की सात, चौथे की सात, पाँचवें की नव, छठें की आठ, सातवें की आठ, आठवें की आठ और नौवें पद की आठ अथवा नौ । आचारदिनकर में नौवें पद के आठ या नौ अक्षर जो कहे गये हैं वह पृथक्-पृथक् गुरु आम्नाय गत पाठ - भेद है। 'पढमं हवइ मंगलं' इस पद में नौ अक्षर हैं। 'पढमं होइ मंगलं इस पद में आठ अक्षर हैं। ये दोनों पाठ हस्तलिखित प्रतियों में मिलते हैं। स्पष्टार्थ है कि नवमें पद के लिए नौ एकासना ही करना चाहिए, किन्तु परम्परागत आम्नाय विशेष से आठ एकाशना करें - इस प्रकार इस तप में कुल अड़सठ एकासन होते हैं। - तृतीय प्रकार रत्नसागर (पृ. 469) के अनुसार जिस पद के जितने अक्षर हैं उतने उपवास करें। इस प्रकार प्रस्तुत विकल्प में 68 उपवास होते हैं। वर्तमान में यह तप उपवास अथवा एकासना के द्वारा किया जाता है।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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