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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...137 भयावह-परम्परा का समूलोच्छेदन करने के उद्देश्य से किया जाता है। इस तप की आराधना आबाल-वृद्ध सभी को करनी चाहिए। आचार्य जिनप्रभसूरि ने कहा है कि नमस्कार मन्त्र का उपधान करने में असमर्थ व्यक्ति को भी नवकार मन्त्र की आराधना करवानी चाहिए। विधि ग्रन्थों में इस तप के तीन प्रकारान्तर पाये जाते हैं। प्रथम प्रकार पंचनमोक्कार-उवहाण-असमत्थस्स नवक्कार-तवो वि-आराहणा कारिज्जइ। सा य इमा पढम-पए अक्खराणि सत्त, तओ सत्त इक्कासणा। एवं पंचक्खरे वीयपए पंच इक्कासणा। तइय-पए सत्त। चउत्थ-पए वि सत्त। पंचम पए नव। छट्ठ पए चूला पए दुग-रूवे सोलस अक्खरे इक्कासणा सत्तम-पए चूला-अंतिम पय दुग रूवे सत्तरस्स अक्खरे सत्तरस्स इक्कासणा। विधिमार्गप्रपा, पृ. 29 • इस नवकारमन्त्र के प्रथम पद “नमो अरिहंताणं' में सात अक्षर हैं, उसकी आराधनार्थ सात एकासना करें। • दूसरा पद 'नमो सिद्धाणं' में पाँच अक्षर हैं, उसके निमित्त पाँच एकासना करें। • तीसरा पद 'नमो आयरियाणं' में सात अक्षर हैं, उसके लिए सात एकासना करें। • चौथा पद 'नमो उवज्झायाणं' में भी सात अक्षर हैं, उसके निमित्त सात एकासना करें। • पाँचवां पद 'नमो लोए सव्व साहूणं' में नव अक्षर हैं, उसके निमित्त नौ एकासना करें। • छठवीं चूला ‘एसो पंच नमुक्कारो' में आठ अक्षर हैं, उसके निमित्त आठ एकासना करें। • सातवीं चूला ‘सव्वपावप्पणासणो' में भी आठ अक्षर हैं, उसके लिए आठ एकासना करें। • आठवीं चूला ‘मंगलाणं च सव्वेसिं' में भी आठ अक्षर हैं, उसके निमित्त आठ एकासना करें और नौवीं चूला ‘पढमं हवइ मंगलं' में नव अक्षर हैं, उसके
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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