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136...सज्जन तप प्रवेशिका
___4. पुष्करार्धे प्रथम भरत क्षेत्रे श्री प्रभासनाथ सर्वज्ञाय नमः
5. पुष्करार्धे द्वितीय भरत क्षेत्रे श्री प्रभावकनाथ सर्वज्ञाय नमः पाँच ऐरवत क्षेत्रों के तीर्थंकर
1. जम्बूद्वीपे ऐरवत क्षेत्रे श्री चन्द्रनाथ सर्वज्ञाय नमः 2. धातकीखण्डे प्रथम ऐरवत क्षेत्रे श्री जयनाथ सर्वज्ञाय नमः 3. धातकीखण्डे द्वितीय ऐरवत क्षेत्रे श्री पुष्पदन्त सर्वज्ञाय नमः 4. पुष्करार्धे प्रथम ऐरवत क्षेत्रे श्री अग्राहिक सर्वज्ञाय नमः
5. पुष्करार्धे द्वितीय ऐरवत क्षेत्रे श्री बलिभद्र सर्वज्ञाय नमः 30. नवकार तप
जैन धर्म का मुख्य मन्त्र नमस्कार-मन्त्र है। यह अनादि निधन एवं शाश्वत मन्त्र है। इसकी महिमा वचन और लेखनी द्वारा असम्भव है। केवली भगवान भी इसका सम्पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते, क्योंकि भाषा सीमित है और महामन्त्र का स्वरूप सीमातीत है। जैसे कमल में मकरन्द (सुगन्ध) व्याप्त है वैसे ही सकल आगमों में नमस्कार मन्त्र परिव्याप्त है। नमस्कार मन्त्र के स्मरण से अनेक जीवों ने मुक्ति प्राप्त की है और अनेक प्राणियों ने इच्छित सिद्धियाँ प्राप्त की हैं।
उपदेशतरंगिणी में कहा गया है कि नमस्कार महामन्त्र के स्मरण से युद्ध, समुद्र, हाथी, साँप, सिंह, व्याधि, अग्नि, दुश्मन, चोर, ग्रह, राक्षस और शाकिनी के उपद्रव नष्ट हो जाते हैं। श्राद्धदिनकृत्य के अनुसार जो मनुष्य एक लक्ष नवकार-मन्त्र का अखण्ड जाप करता है तथा जिनेश्वर परमात्मा और चतुर्विध संघ की पूजा करता है वह तीर्थङ्कर नाम कर्म बांधता है। “नव लाख जपतां नरक निवारे" और "नव लाख जपतां थाये जिनवर" आदि सुभाषितों से स्पष्ट है कि महामन्त्र नवकार के नौ लाख जाप करने से नरकगति टल जाती है। एक जगह लिखा गया है कि
नवकार समो मंत्रं, शत्रुञ्जयसमो गिरिः ।
वीतराग समो देवो, न भूतो न भविष्यति ।।
अद्भुत शक्तियों से युक्त नमस्कार महामन्त्र की आराधना के लिए जो तप किया जाता है वह नमस्कार तप कहलाता है। इस तप के करने से बाह्य व आभ्यन्तर सर्व सुखों की प्राप्ति होती है। यह तप जन्म-मरण की दुःखद एवं