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________________ उद्यापन जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप - विधियाँ... 139 उज्जमणे रूप्य - मय- पट्टियाए, कणय- लेहणीए मयनाहि । रसेण अक्खराणि लिहित्ता अट्ठ- सट्ठीए मोयगेहिं पूया ।। विधिमार्गप्रपा, पृ. 29 रूप्यमय-पट्टिकायां सुवर्ण-लेखिन्या पंचपरमेष्ठि- मंत्रं लिखित्वा ज्ञानपूजां विदध्यात्। अष्टषष्टिसंख्यया फल- पुष्प मुद्रा पक्वान्न ढौकनं संघवात्सल्यं संघ पूजा च । । आचारदिनकर, पृ. 358 इस तप के उद्यापन में चाँदी के पतरे पर स्वर्ण की कलम से पंचपरमेष्ठी मन्त्र लिखकर ज्ञान पूजा करें। अड़सठ - अड़सठ फल, पुष्प, मुद्रा एवं पकवान रखें। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करें। • प्रचलित विधि के अनुसार नवकार तप के दिनों में निम्न जापादि करें जाप साथिया खमा. कायो. माला 1. ॐ नमो अरिहंताणं 2. ॐ नमो सिद्धाणं 3. ॐ नमो आयरियाणं 7 8 - 9 ~ LO 4. ॐ नमो उवज्झायाणं • 5. ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं 9 8 6. ॐ एसो पंच नमुक्कारो 7. ॐ सव्वपावप्पणासणो 8. ॐ मंगलाणं च सव्वेंसि 9. ॐ पढमं हवइ मंगलं 31. पंचपरमेष्ठी तप अर्हत संस्कृति में अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, पंचपरमेष्ठी कहलाते हैं। 5 7 7 9 8 8 9 9 उपाध्याय और 2220 2 2 2 2 2 2 2 20 20 20 20 20 20 20 साधु ये अरिहन्त - मोक्ष मार्ग के प्रथम प्रतिष्ठापक और उपदेष्टा होते हैं। ये गर्भ काल से ही मति, श्रुत और अवधि - इन तीन ज्ञान से युक्त होते हैं और दीक्षा
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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