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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...129 सर्व प्रकार के साधकों के लिए करणीय है। इसकी उल्लिखित विधि इस प्रकार है - चरम-जिनस्यैकादश शिष्या गणधारिणस्तदर्थं च । प्रत्येकमनशनान्यथा चाम्लान्यथा विदध्याच्च ।। आराधनार्थं प्रत्येकमेकादशोपवासानेकान्तरान् । आचाम्लानि वा विदधीत । आचारदिनकर, पृ. 357 यह तप वैशाख शुक्ला एकादशी को प्रारम्भ करके इसमें प्रत्येक गणधर के आश्रित ग्यारह उपवास या ग्यारह आयंबिल एकान्तर पारणे से करें। __ मतान्तर से इस तप की आराधना निमित्त 11 उपवास अथवा 11 आयम्बिल करें। इस प्रकार यह तप 22 दिनों में पूर्ण होता है। वर्तमान में इस तप की आराधना उभय रीतियों से की जाती है। उद्यापन- इस तप के उद्यापन में गणधर मूर्ति की पूजा करें। साधर्मीवात्सल्य एवं संघ पूजा करें। • जीतव्यवहार के अनुसार इस तप की सम्यक आराधना हेतु उन दिनों निम्न क्रियाएँ अवश्य करेंक्रम जाप साथिया | खमा. लोगस्स माला 1. श्री इन्द्रभूति गणधराय नमः . 11 | 2.| श्री अग्निभूति गणधराय नमः | 11 3. श्री वायुभूति गणधराय नमः 4.| श्री व्यक्त गणधराय नमः | श्री सुधर्मास्वामी गणधराय नमः 6. श्री मंडितपुत्र गणधराय नमः 7.| श्री मौर्यपुत्र गणधराय नमः 8. श्री अकंपित गणधराय नमः 9. श्री अचल गणधराय नमः 10. श्री मेतार्य गणधराय नमः 11. श्री प्रभास गणधराय नमः
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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