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________________ 128...सज्जन तप प्रवेशिका वर्ष-4, तप दिन- 64 प्रथम भा.कृ.तिथि | 은 तप 은 जजAn | | - | ल | + - ल | NPN+ N # N - ल 1 - ल 1 द्वितीया भा.कृ. तिथि तप तृतीया भा.कृ. तिथि तप चतुर्थ भा.कृ. तिथि तप 은 1151 1121314 आ. आ. आ.आ./आ.आ. आ.आ. आ. आ.आ. आ.आ.आ.आ |4|5|6|7|8|9|10|11/12|13|14/15/1/2/3/4 उ.| उ. |उ. | . उ. | उ. उ.| उ. उ. | उ. | उ. उ. | . उ. उ. उ 4 उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर बृहत्स्नात्र विधि से समवसरण की पूजा करें। छह विकृतियों से युक्त पकवान के थाल चढ़ायें। समवसरण की बृहद् पूजा रचायें। साधर्मिक वात्सल्य एवं संघपूजा करें। • प्रचलित आम्नाय के अनुसार इस तप की चारों परिपाटियों में क्रमश: निम्न जापादि करें| जाप साथिया खमा. कायो. माला प्रथम श्रेणी | श्री भावजिनाय नमः | 10 द्वितीय श्रेणी | श्री समवसरणजिनाय नमः | 9 तीसरी श्रेणी | श्री मनःपर्यवअर्हते नमः चौथी श्रेणी | श्री केवलीजिनाय नमः क्रम | 12 27. एकादश गणधर तप प्रत्येक तीर्थङ्कर के प्रमुख शिष्यों को गणधर कहते हैं। जैसे भगवान ऋषभदेव के चौरासी गणधर थे और भगवान महावीर के ग्यारह गणधर हुए। इस प्रकार प्रत्येक तीर्थङ्कर के भिन्न-भिन्न संख्या में गणधर होते हैं। गण + धर अर्थात साधु-साध्वी के समुदाय विशेष का संचालन करने वाले गणधर कहलाते हैं। ___ इस तप के माध्यम से वर्धमान स्वामी के ग्यारह गणधरों का आराधन किया जाता है। प्रस्तुत तप के प्रतिफल से केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। यह तप
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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