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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...127 विधि ग्रन्थों में इसकी निम्न दो विधियाँ प्राप्त होती हैंप्रथम विधि ___ तहा भद्दवए किण्हचउत्थीए एगासण-निविगइय आयंबिलउववासेहिं परिवाड़ी- चउक्केण जहसतिकएहिं समवसरण-पूया-जुत्तंचउसु भद्दवएसु समवसरण-दुभार-चउकस्साराहणेणं (भाद्रपद-कृष्ण चतुर्थीमारभ्य शुक्ल चतुर्थी यावत् यथाशक्ति तपो विधीयते) समवसरण तवो चउसट्ठि-दिण-माणो होइ। विधिमार्गप्रपा, पृ. 27 ___विधिमार्गप्रपा के अनुसार यह तप भाद्रकृष्णा चतुर्थी से प्रारम्भ कर सोलह दिनों तक यथाशक्ति एकाशन, नीवि, आयंबिल और उपवास- इन चार परिपाटियों के द्वारा पूर्ण किया जाता है। सुस्पष्ट है कि यह तप चार वर्षों में चतुः परिपाटियों द्वारा किया जाता है। उसमें प्रथम वर्ष सोलह दिन एकासना, दूसरे वर्ष नीवि, तीसरे वर्ष आयंबिल और चौथे वर्ष उपवास करना चाहिए। इस तरह चौसठ दिनों में इसे पूर्ण करते हैं। वर्तमान में इस तप की चारों परिपाटियाँ एकासना तप के द्वारा पूर्ण की जाती हैं। दूसरी विधि श्रावणमथ भाद्रपदं, कृष्ण प्रतिपदमिहादितां नीत्वा। षोडशदिनानि कार्यं वर्ष चतुष्कं स्वशक्तितः।। __ आचारदिनकर, पृ. 356 आचार्य वर्धमानसूरि के अनुसार यह तप श्रावण कृष्णा प्रतिपदा अथवा भाद्रकृष्णा प्रतिपदा को प्रारम्भ कर इसमें सोलह दिन तक यथाशक्ति बियासन या एकाशन करें तथा नित्य समवसरण की पूजा करें। प्रस्तुत विधि के अनुसार भी यह तप चौसठ दिनों में पूर्ण किया जाता है। इस तप की पूर्वोक्त दोनों विधियों में तिथि को लेकर महत्त्वपूर्ण अन्तर है। यद्यपि वर्तमान सामाचारी विधिमार्गप्रपा का अनुगमन करती है। विधिमार्गप्रपा अनुमत इसका विधि यन्त्र निम्न है -
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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