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116...सज्जन तप प्रवेशिका
19. बारह मासिक तप ___यह तप भगवान ऋषभदेव के तीर्थ में उनके साधुओं द्वारा आचरित तप है। यद्यपि यह तप संवत्सर (वर्षी) तप से ही सम्बन्ध रखता है फिर भी इसे पृथक् दिखाने का प्रयोजन यह है कि भगवान आदिनाथ का संवत्सर तप तेरह मास
और ग्यारह दिनों में पूर्ण हुआ था, जबकि उनके शासन में होने वाले मुनियों ने इस तप का आचरण बारह माह पर्यन्त ही किया।
संवत्सर' का शाब्दिक अर्थ होता है बारह महीना। यहाँ खास उल्लेख्य है कि भगवान आदिनाथ के द्वारा इस तप की आराधना निकाचित भोगान्तराय कर्मों के उदय के कारण की गई जबकि उनके तीर्थकालीन साधु-साध्वियों ने अपने उपकारी प्रभु का अनुसरण करने एवं निकाचित कर्मों का क्षय करने के उद्देश्य से इस तप का आसेवन किया।
___ ध्यातव्य है कि भगवान ऋषभदेव के तीर्थ में उनके साधुओं द्वारा तीन सौ साठ उपवास निरन्तर किये गये। आचार्य जिनप्रभसूरि ने इसी तप की चर्चा की है। विधि
एवं उसभसामि तित्थसाहुचिण्णो बारसमासिय-तवो छठेहिं तिहिं तिहिं सएण उववासाणं।
विधिमार्गप्रपा, पृ. 29 भगवान ऋषभदेव के साधुओं द्वारा आचरित यह बारह मासिक तप तीन सौ साठ उपवास के द्वारा किया जाता है।
आचार्य जिनप्रभसूरि ने इस तप की उत्सर्ग-विधि दर्शायी है। उन्होंने 360 उपवासों को एकान्तर पारणा द्वारा करने का कहीं निर्देश नहीं किया है, परन्तु वर्तमान में वैसा सामर्थ्य न होने से तप रुचिवन्त साधक इस तप को एकान्तर पारणा करते हुए दो वर्ष में पूरा करते हैं।
• बारह मासी तप को सार्थक करने के लिए तपश्चर्या काल में निम्न आराधनाएँ अवश्य करेंजाप
साथिया खमा. लोगस्स माला ॐ श्री आदिनाथाय नमः 12 12 12 20