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________________ 114...सज्जन तप प्रवेशिका में अक्षय तृतीया के दिन प्रथम पारणे के रूप में इक्षुरस की प्राप्ति हुई। यह तप इसी उपलक्ष्य में किया जाता है। वर्तमान में भगवान आदिनाथ जैसा शरीरसंघयण न होने से एकान्तर उपवास से यह तप करते हैं। प्रभु आदिनाथ का यह तप तेरह मास और ग्यारह दिनों में पूर्ण हुआ था, वर्तमान परिपाटी में लगभग उससे दुगुनी अवधि परिपूर्ण होती है। ___ इस तप के फल से निकाचित कर्मों का क्षय होता है। आज इस तप की प्रसिद्धि दिनानुदिन बढ़ती जा रही है। सामूहिक रूप से हजारों आराधक इस तपाराधना से जुड़े हुए हैं। प्रतिवर्ष सिद्धाचल एवं हस्तिनापुर तीर्थ पर हजारों की संख्या में इस तप का पारणा होता है। इसकी सामान्य विधि यह है - चित्त-बहुल-टुमिओ आरज्म चत्तारि सया उववासा एगंतराइ कमेण जहा अंगिकारं परिज्जंति। तईय वरिस-संतिय-अक्खय-तइयाए संघगुरु-साहम्मिय-पूया-पुव्वं पारिज्जति। उसभसामिचिन्नो। संवच्छरिय तवो। विधिमार्गप्रपा, पृ. 29 यह तप चैत्र कृष्णा अष्टमी से प्रारम्भ कर चार सौ उपवास एकान्तर पारणे से किये जाते हैं तथा जिस प्रकार इस तप को अंगीकार करते हैं उसी प्रकार तीसरे वर्ष में अक्षय तृतीया के दिन संघ, गुरु एवं साधर्मी की भक्ति पूर्वक इसे पूर्ण करते हैं। यह तप करते हुए एकान्तर उपवास के पारणे में बियासना करना चाहिए। इस तप में निरन्तर दो दिन नहीं खाना चाहिए। चतुर्दशी के दिन पारणा नहीं करना चाहिए। चैत्री पूनम, कार्तिक पूनम आदि में बेला करना चाहिए। । ___ कुछ लोग एक वर्ष एकान्तर उपवास करके उसे वर्षीतप मान लेते हैं लेकिन वह किसी तरह से उचित नहीं है, क्योंकि एक वर्ष एकान्तर करने से 400 उपवास पूरे नहीं हो पाते हैं तब उसे वर्षीतप की संज्ञा कैसे दी जा सकती है? • प्रचलित विधि के अनुसार इस तपश्चर्या काल में निम्न जापादि करने चाहिए ____ जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ ऋषभदेवनाथाय नमः 12 12 12 20
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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