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________________ 112...सज्जन तप प्रवेशिका इस तप के प्रथम वर्ष की शुक्ल पंचमी के दिनों में बियासना करें, दूसरे वर्ष की शुक्ल पंचमी दिनों में एकासना करें, तीसरे वर्ष की शुक्ल पंचमियों में नीवि करें, चौथे वर्ष की शुक्ल पंचमी के दिनों में आयम्बिल करें और पाँचवें वर्ष की शुक्ल पंचमी दिनों में उपवास करें- इस तरह यह तप पाँच वर्ष में पूर्ण होता है। इसे बृहत्पंचमी तप कहते हैं। वर्तमान में सामान्यतया यह तप पाँच वर्ष और पाँच मास तक किया जाता है। कुछ जन इस तप की आराधना जीवन पर्यन्त भी करते हैं तथा शक्तिहीन पाँच महीना भी करने की भावना रखते हैं। __उद्यापन- इस तप का उद्यापन तप के आदि, मध्य या अन्त में करना चाहिए। उस दिन अपने वैभव के अनुसार जिनेश्वर परमात्मा की पूजा करें। पाँच-पाँच प्रकार के पकवान, फल एवं मुद्राएँ चढ़ाएं। आगम पुस्तक के आगे कवली, डोरी, रूमाल, पीछी, पाटी, नवकारवाली, वासक्षेप का बटुआ, कलम, दवात, मुखवस्त्रिका,छुरी, कैंची, कम्बली, दण्ड, ठवणी, दीपक, अंगलूहणा, चन्दन, वासचूर्ण, चामर, पुस्तक, वेष्टन, लेखन-साधन, वासकुंपी, स्थापनाचार्य, कलश, धूपकुडची आदि सभी वस्तुएँ पाँच-पाँच की संख्या में रखें। अष्टप्रकारी पूजा करें। यदि बृहद् रूप में उद्यापन करना हो तो ज्ञान आदि की सर्व सामग्री पच्चीस गुणा अर्पित करनी चाहिए, ऐसा विधिमार्गप्रपाकार का अभिमत है। साधर्मीवात्सल्य एवं संघपूजा का सामर्थ्य जुटायें। • गीतार्थ आज्ञानुसार इस तप में निम्न क्रियाएँ करनी चाहिए जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो नाणस्स 51/ 5 51/5 51/5 20 16. चतुर्विध संघ तप अर्हत धर्म में चतुर्विध संघ का गौरवपूर्ण स्थान है। साधु-साध्वी, श्रावकश्राविका इन चारों का समन्वित रूप चतुर्विध संघ कहलाता है। इस संघ के अवलम्बन से ही धर्म रूपी रथ का पहिया निरन्तर प्रवाहमान रहता है। तीर्थङ्कर परमात्मा भी देशना देने से पूर्व 'नमो तित्थस्स' कहकर चतुर्विध संघ को नमन करते हैं। जिस संघ को तीर्थङ्कर जैसे उत्कृष्ट पुण्य पुरुष भी पूजते हैं वह भवभवान्तर में मुझे भी प्राप्त होता रहे इस उद्देश्य से यह तप किया जाता है।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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